Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - बीसवाँ अध्ययन kakakakakakakakakixxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx कर संयम अंगीकार करता है वह सभी जीवों का रक्षक होने से तथा अपनी आत्मा को पाप कर्मों से निवृत्त करने से सभी जीवों का और अपने आप का नाथ-स्वामी हो जाता है। अतः अनाथी मुनि का यह कथन यथार्थ है कि मैं बस स्थावरों का एवं स्व-पर का नाथ बन गया।
सनाथता-अनाथता का मूल कारण, आत्मा । अप्पा णई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे णंदणं वणं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, णई - नदी, वेयरणी - वैतरणी, कूडसामली - कूट शाल्मली वृक्ष, कामदुहा घेणु - कामदुघा धेनु, णंदणं वणं - नन्दन वन।
भावार्थ - मेरी आत्मा ही वैतरणी नदी है और आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है। मेरी आत्मा ही सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली कामदुघा धेनु है और आत्मा ही नन्दन वन है।
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्टिय सुपट्टिओ॥३७॥ .
कठिन शब्दार्थ - कत्ता - कर्ता, विकत्ता - विकर्ता-भोक्ता, दुहाण - दुःखों, सुहाणसुखों, मित्तममित्तं - मित्र और अमित्र - शत्रु, दुप्पट्ठिय - दुष्प्रवृत्ति में, सुप्पट्टिओ - सत्प्रवृत्ति में। ___भावार्थ - आत्मा ही सुखों का और दुःखों का करने वाला है और विकर्ता - सुख-दुःखों को काटने वाला भी आत्मा ही है। सुप्रतिष्ठित - श्रेष्ठ मार्ग में चलने वाला आत्मा मित्र है और दुःप्रतिष्ठित - दुराचार में प्रवृत्ति करने वाला आत्मा अमित्र-शत्रु है। तात्पर्य यह है कि यह आत्मा स्वयं ही सुख-दुःख का कर्ता और भोक्ता है, अन्य कोई नहीं है।
विवेचन - उपरोक्त दो गाथाओं में अनाथीमुनि ने राजा श्रेणिक को स्पष्ट कर दिया कि सनाथता और अनाथता का मूल कारण आत्मा ही है क्योंकि आत्मा ही कर्मों का कर्ता और भोक्ता है। अतः आत्मा को हिंसादि के कुपथ पर चलाने पर वही शत्रु बन कर अनाथ हो जाती है तथा उसी को रत्नत्रयी के सुपथ पर चलाने पर वही मित्र बन कर सनाथ हो जाती है। यही सनाथता और अनाथता का रहस्य है।
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