Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - बीसवाँ अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
५. आचारहीन, वेषधारी और जानकारों की दृष्टि में मूल्यहीन। ६. कुशीलवेषी, मुनि चिह्नों से आजीविका चलाने वाला, संयम अभिमानी। ७. विषयभोगों से मिश्रित धर्म का पालक सुख-सुविधावादी। ८. लक्षण, स्वप्न, निमित्त, कौतुक, मंत्र तंत्रादि से जीवन जीने वाला। ६. शीलरहित, अज्ञान अंधकार से ग्रस्त, विपीरत दृष्टि वाला। .. १०. अनेषणीय आहार ग्रहण करने वाला। ११. दुष्ट आचार प्रवृत्त, संयमहीन, दुरात्मा। . १२. उत्तमार्थ में विपरीत दृष्टि वाला, उभयलोक भ्रष्ट साधक। १३. स्वच्छंद, कुशील एवं जिनमार्ग विराधक।
अनाथ भी सनाथ बन सकते हैं सोच्चाण मेहावी सुभासियं इमं, अणुसासणं णाणगुणोववेयं। मगं कुसीलाण जहाय सव्वं, महाणियंठाण वए पहेणं॥१॥
कठिन शब्दार्थ - सोच्ाण - सुन कर, मेहावी - मेधावी, सुभासियं - सुभाषित, अणुसासणं - अनुशासन को, णाणगुणोववेयं - ज्ञानगुण से युक्त, मगं - मार्ग को, कुसीलाण - कुशीलों - आचार-भ्रष्टों के, जहाय - छोड़ कर, महाणियंठाण - महानिग्रंथों के, वए - चले, पहेणं - मार्ग से।
भावार्थ - अनाथी मुनि राजा श्रेणिक को एवं समस्त भव्य पुरुषों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि सुभाषित - भली प्रकार कही हुई, ज्ञानगुण से युक्त इस अनुशासन-शिक्षा को सुन कर बुद्धिमान् साधु कुशीलियों के कुत्सित मार्ग को सर्वथा प्रकार से छोड़ कर महा निर्ग्रन्थों के मार्ग से चले अर्थात् अनुसरण करे।
चरित्तमायारगुणण्णिए तओ, अणुत्तरं संजम पालियाणं। णिरासवे संखवियाण कम्मं, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं॥५२॥
कठिन शब्दार्थ - चरित्तमायारगुणण्णिए - चारित्राचार और ज्ञानादि गुणों से सम्पन्न, अणुत्तरं - उत्कृष्ट, संजम - संयम का, पालियाणं - पालन कर, णिरासवे - निराम्रव, संखवियाण कम्मं - कर्मों का क्षय करके, विउलुत्तमं - विशाल एवं सर्वोत्तम, धुवं - ध्रुव-शाश्वत।
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