Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 408
________________ महानिग्रंथीय - अनाथता-सनाथता का स्पष्टीकरण ३७६ AattaxxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkAAAAAAAAAAAAAAA भावार्थ - इस प्रकार की श्रेष्ठ ऋद्धि सम्पदा के होते हुए तथा सभी प्रकार के काम-भोग स्वाधीन होते हुए मैं कैसे अनाथ हूँ। इसलिए हे पूज्य! कहीं ऐसा न हो कि आपका वचन मृषाअसत्य हो जाय। विवेचन - राजा ने कहा - 'मेरे पास नाना प्रकार की ऋद्धि, ऐश्वर्य एवं सम्पत्ति है, सब प्रकार के कामभोगों की विद्यमानता है तथा मेरे पास ऐश्वर्य, प्रभुत्व एवं शासन भी है, सेवकों पर मेरी आज्ञा चलती है, मगध जनपद पर मेरी राज्यसत्ता है फिर आपने मुझे अनाथ कैसे कह दिया?' अनाथता-सनाथता का स्पष्टीकरण ण तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं च पत्थिवा। जहा अणाहो भवइ, सणाहो वा णराहिवा! ॥१६॥ कठिन शब्दार्थ - तुमं - तुम, अणाहस्स - अनाथ शब्द के, ण जाणे - नहीं जानते हो, अत्थं - अर्थ को, पोत्थं - उसकी उत्पत्ति को-परमार्थ को, पत्थिवा - हे पृथ्वीपति! अणाहो - अनाथ, भवइ - होता है, सणाहो - सनाथ, णराहिवा - नराधिप। ... • भावार्थ - पार्थिव-पृथ्वीपति-हे राजन्! हे नराधिप! तुम अनाथ शब्द के अर्थ और उसकी मूल उत्पत्ति को नहीं जानते हो कि अनाथ कैसा होता है और सनाथ कैसा होता है.? सुणेह मे महाराय! अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवइ, जहा मेयं पवत्तियं ॥१७॥ कठिन शब्दार्थ. - सुणेह - सुनो, अव्वक्खित्तेण चेयसा - अव्याक्षिप्त चित्त-एकाग्र चित्त से, पवत्तियं - प्रयोग किया। ___भावार्थ - हे महाराज! हे राजन्! एकाग्र चित्त से मुझ से सुनो। जिस प्रकार यह जीव अनाथ होता है और जिस प्रकार मैंने इस अनाथता की प्रवृत्ति-प्ररूपणा की है। कोसंबी णाम णयरी, पुराणपुरभेयणी। तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूय-धणसंचओ॥१८॥ कठिन शब्दार्थ - पुराणपुरभेयणी - प्राचीन नगरों को मात करने वाली, आसी - रहते थे, पिया - पिता, मज्झ - मेरे, पभूयधणसंचओ - प्रभूतधनसंचय - उनके पास प्रचुर धन का संचय था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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