Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 411
________________ उत्तराध्ययन सूत्र - बीसवाँ अध्ययन कठिन शब्दार्थ - पिया - पिता, सव्वसारं सर्वस्व धन या बहुमूल्य वस्तुएं, दिज्जाहि दिया, मम कारणा - मेरे कारण, दुक्खा - दुःख से। भावार्थ - मेरे पिता मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ (बहुमूल्य) पदार्थ भी उन वैद्यों को देने के लिए तत्पर थे फिर भी वे मुझे दुःख से नहीं छुड़ा सके, यह मेरी अनाथता है। माया वि मे महाराय ! पुत्तसोग - दुहट्ठिया । णय दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २५ ॥ कठिन शब्दार्थ माया ३८२ *** - - पीड़ित । भावार्थ - हे महाराज ! पुत्र के शोक से अत्यन्त दुःखी बनी हुई मेरी माता ने भी मेरी रोग निवृत्ति के लिए अनेक उपाय किये किन्तु वह भी मुझे दुःख से नहीं छुड़ा सकी, यह मेरी अनाथता है। - Jain Education International भायरा मे महाराय ! सगा जेटुकणिट्ठगा । णय दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २६ ॥ कठिन शब्दार्थ - भायरा भाइयों ने, सगा - सहोदर, जेट्ठकणिट्ठगा - ज्येष्ठ और - माता, पुत्तसोगदुहट्ठिया - पुत्र शोक के दुःख से आर्त *** कनिष्ठ । भावार्थ हे महाराज ! मेरे सहोदर (सगे) ज्येष्ठ और कनिष्ठ अर्थात् बड़े और छोटे भाइयों ने भी अनेक प्रयत्न किये किन्तु वे भी मुझे दुःख से छुड़ाने में समर्थ नहीं हुए, यह मेरी अनाथता है। भइणीओ में महाराय ! सगा जेटुकणिट्ठगा । णय दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥२७॥ कठिन शब्दार्थ - भइणीओ - बहिनों ने । भावार्थ - हे महाराज! मेरी सहोदर (सगी) ज्येष्ठ और कनिष्ठ अर्थात् बड़ी और छोटी बहिनों ने भी अनेक उपाय किये किन्तु वे भी मुझे दुःख से न छुड़ा सकीं, यह मेरी अनाथा पे है। भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं णयणेहिं, उरं मे परिसिंचइ ॥२८॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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