Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 409
________________ ३८० Adddddddddddddddddkkkkkkkkkkkkkkkkk★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ उत्तराध्ययन सूत्र - बीसवाँ अध्ययन भावार्थ - अपनी विशेषताओं के कारण पुरानी नगरियों से अपने-आपको पृथक् करने वाली (अति प्राचीन) एवं प्रधान कोशाम्बी नामक नगरी है वहाँ पर बहुत धन का संचय करने वाले प्रभूतधनसंचय नाम के मेरे पिता रहते हैं। पढमे वए महाराय! अउला मे अच्छिवेयणा। अहोत्था विउलो दाहो, सव्वगत्तेसु पत्थिवा॥१६॥ कठिन शब्दार्थ - पढमे वए - प्रथम वय में, अउला - अतुल-असाधारण, अच्छिवेयणाआंखों की वेदना, अहोत्था - होने लगी, विउलो - विपुल, दाहो - दाह (जलन), सव्वगत्तेसुसंपूर्ण शरीर में। .. भावार्थ - हे महाराज! प्रथम वय (यौवनावस्था) में मेरे अतुल-अत्यन्त आँखों की वेदना हुई थी, उनमें अत्यन्त पीड़ा होने लगी और पार्थिव-हे राजन्! इसके साथ ही साथ मेरे सारे शरीर में विपुल-अत्यन्त दाह (जलन) होने लगी। सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीर-विवरंतरे। ... आवीलिज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा॥२०॥ कठिन शब्दार्थ - सत्थं - शस्त्र, जहा - जैसे, परमतिक्खं - परम तीक्ष्ण, सरीर विवरंतरे - शरीर के छिद्रों-कोमल मर्म स्थानों में, आवीलिज्ज - भौंकदे (घुसेड़ दे), अरी - शत्रु, कुद्धो - क्रुद्ध। भावार्थ - जिस प्रकार क्रोध में आया हुआ शत्रु शरीर के आँख, नाक, कान तथा मर्मस्थानों में अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र घुसेड़ दे, उससे जिस प्रकार की वेदना होती है उसी प्रकार की मेरी आँखों में असह्य वेदना हो रही थी। तियं मे अंतरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडइ। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा॥२१॥ कठिन शब्दार्थ - तियं - कटि, अंतरिच्छं - अन्तरेच्छ-हृदय, उत्तमंगं - मस्तक को, पीडइ - पीड़ित कर रही थी, इंदासणिसमा - इन्द्र का वज्र लगने के समान, घोरा - घोर, वेयणा - वेदना, परमदारुणा - अत्यंत दारुण। ' : भावार्थ - इन्द्र का अशनि-वज्र लगने से जैसी वेदना होती है वैसी घोर और अत्यन्त दुःखदायी वेदना मेरी कमर के मध्य भाग को और मस्तक को पीड़ित कर रही थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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