Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 402
________________ - महानिग्रंथीय - मुनि दर्शन ३७३ *************************** ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ + + राजा का उद्यान गमन पभूयरयणो राया, सेणिओ मगहाहिवो। विहारज्जत्तं णिजाओ, मंडिकुच्छिसि चेइए॥२॥ कठिन शब्दार्थ - पभूयरयणो - प्रचुर रत्नों (गज अश्व आदि तथा मणि माणिक्य आदि) से संपन्न, मगहाहिवो - मगधाधिप - मगध देश का अधिपति, विहारजतं - विहार यात्रा के लिए, णिज्जाओ - निकला, मंडिकुच्छिसि - मण्डिकुक्षि नामक, चेइए - चैत्य (उद्यान)। भावार्थ - प्रभूतरत्न-मरकत-मणि आदि बहुत से रत्नों वाला एवं श्रेष्ठ हाथी-घोड़े आदि ऋद्धि-सम्पन्न मगधाधिप - मगध देश का स्वामी श्रेणिक नाम का राजा मंडिकुक्षि नामक चैत्य (उद्यान) में विहार-यात्रा के लिए निकला। णाणादुमलयाइण्णं, णाणापक्खि-णिसेवियं। णाणाकुसुमसंछण्णं, उजाणं णंदणोवमं॥३॥ कठिन शब्दार्थ - णाणादुमलयाइण्णं - विविध प्रकार के वृक्षों और लताओं से व्याप्त, णाणापविखणिसेवियं - नाना प्रकार के पक्षियों से परिसेवित, णाणाकुसुमसंछण्णं - विभिन्न प्रकार के पुष्पों से आच्छादित, उजाणं - उद्यान, णंदणोवमं - नंदन वन के समान। भावार्थ - अनेक प्रकार के वृक्षों और लताओं से युक्त, अनेक प्रकार के पक्षियों से सेवित अनेक प्रकार के फूलों से आच्छादित वह उद्यान नन्दन वन के समान सुशोभित था। मुनि दर्शन तत्थ सो पासइ साहुं, संजयं सुसमाहियं। णिसण्णं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं॥४॥ कठिन शब्दार्थ - पासइ - देखा, साहुं - साधु को, संजयं - संयत, सुसमाहियं - सुसमाधिवंत, णिसणं - बैठे हुए, रुक्खमूलम्मि - वृक्ष के नीचे, सुकुमालं - सुकुमार, सुहोइयं - सुखोचित - सुखोपभोग के योग्य। .. . भावार्थ - वहाँ एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए सुकुमार सुखोचित (सुखों के योग्य) सुसमाधिवंत संयत साधु को उस राजा ने देखा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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