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उत्तराध्ययन सूत्र - बीसवाँ अध्ययन
विवेचन यद्यपि यहां साहुं - 'साधु' शब्द कहने से ही अर्थबोध हो जाता, फिर भी उसके दो अतिरिक्त विशेषण 'संजयं सुसमाहियं' प्रयुक्त किये गए हैं वे सकारण हैं क्योंकि शिष्ट पुरुष को भी साधु कहा जाता है अतः भ्रांति का निराकरण करने के लिए 'संयत' (संयमी) शब्द का प्रयोग किया, किंतु निह्नवं आदि भी बाह्य दृष्टि सेन्संयमी हो सकते हैं अतः 'सुसमाहित' विशेषण और जोड़ा गया अर्थात् वह संयत होने के साथ-साथ सम्यक् मनः समाधान सम्पन्न थे।..
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तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चंतपरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - रूवं रूप को, पासित्ता - देखकर, राइणो राजा, अच्चंतपरमो - अत्यंत परम, आसी हुआ, अउलो - अतुल, रूवविम्हओ रूप विस्मय।
भावार्थ उस साधु का रूप देखकर राजा को उस संयत के रूप के विषय में अत्यंत, परम और अतुल - बहुत विस्मय - आश्चर्य हुआ ।
अहो वण्णो अहो रूवं, अहो अज्जस्स सोमया । अहो खंती अहो मुत्ती, अहो भोगे असंगया ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - अहो - अहा! वण्णो वर्ण, रूवं सोमया - सौम्यता, खंती क्षमा, मुत्ती मुक्ति-निर्लोभता, भोगे - भोगों में, असंगया असंगता- निःस्पृहता- अनासक्ति ।
आर्य की,
रूप, अज्जस्स
भावार्थ
अहा ! कैसा आश्चर्यकारी इस आर्य का वर्ण है? अहा! रूप, अहा! सौम्यता, अहा ! क्षमा, अहा! मुक्ति-निर्लोभता और अहा! भोगों में असंगता - अनासक्ति है अर्थात् इस मुनि का वर्ण, रूप, सौम्यता, क्षमा, निर्लोभता और भोगों में अनासक्ति सभी आश्चर्यकारी है। विवेचन - शंका- वर्ण और रूप में क्या अंतर है?
समाधान
वर्ण का अर्थ है सुस्निग्धता या गोरा, गेहुंआ आदि रंग और रूप कहते हैं आकार (आकृति) एवं डीलडौल को । वर्ण और रूप
व्यक्तित्व जाना जाता है।
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राजा की विस्मययुक्त जिज्ञासा
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