Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 405
________________ ३७६ उत्तराध्ययन सूत्र । बीसवाँ अध्ययन *********************aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa******* - मुनि का उत्तर . अणाहो मि महाराय! णाहो मज्झ ण विजइ। अणुकंपगं सुहिं वा वि, कंचि णाभिसमेमहं॥६॥ कठिन शब्दार्थ - अणाहो मि - मैं अनाथ हूं, महाराय - हे राजन्! णाहो - कोई नाथ, मज्झ - मेरा, ण विजइ - नहीं है, अणुकंपगं - अनुकम्पा करने वाले, कंचि - कोई, सुहिं - सुहृद-मित्र, ण अभिसमे - नहीं मिला है, अहं - मैं। भावार्थ - हे राजन्! मैं अनाथ हूँ, मेरा कोई नाथ नहीं है तथा मेरे पर अनुकम्पा कर के सुख देने वाला और कोई सुहृद-मित्र भी नहीं मिला है। अतः मैंने दीक्षा ले ली है। विवेचन - अनाथी मुनि का गृहस्थ अवस्था का नाम 'गुणसुन्दर' था। किसी ग्रंथ में उनका नाम सुदर्शन था, ऐसा भी मिलता है। किन्तु रोग और पीड़ा से छुड़ाने में कोई समर्थ नहीं हुआ तब गुणसुन्दर ने अपने आपको 'अनाथ' बतलाया है। इसलिए इस सारे अध्ययन का नाम ही अनाथी मुनि का अध्ययन' हो गया। अन्यथा इस अध्ययन का नाम तो ‘महानिर्ग्रन्थीय' है। . __नाथ शब्द का अर्थ इस प्रकार है - 'योगक्षेमकृत नाथः' अर्थात् योग क्षेम करने वाले को नाथ कहते हैं। नहीं मिली हुई वस्तु का मिलना योग कहलाता है और मिली हुई वस्तु की रक्षा करना क्षेम कहलाता है। जो ऐसा न हों उसे अनाथ कहते हैं। .. अनाथी मुनि ने दीक्षा ग्रहण करने का मुख्य कारण अपनी अनाथता बतलाई, जो उनके वैराग्य और गृहत्याग का कारण बनी। श्वेणिक के नाथ बनने की स्वीकृति तओ सो पहसिओ राया, सेणिओ मगहाहिवो। एवं ते इटिमंतस्स, कहं णाहो ण विजइ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - पहसिओ - जोर से हंसा, इहिमंतस्स - ऋद्धि सम्पन्न, णाहो - नाथ। भावार्थ - मुनि के उपरोक्त वचन सुन कर वह मगधाधिप - मगध देश का स्वामी श्रेणिक राजा हंसा और कहने लगा कि इस प्रकार रूपादि की ऋद्धि से सम्पन्न आपका कोई नाथ नहीं है, यह कैसे हो सकता है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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