Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 367
________________ ३३८ उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन *aaaaaaaaaaaaa************************************************ पहले कहीं देखा है। इस प्रकार चिंतन करते उसे संज्ञीज्ञान-जातिस्मरण ज्ञान हो गया और वह अपने पूर्वजन्म को याद करने लगा। उसे स्मरण हो गया कि वह देवलोक से च्यव कर मनुष्य भव में आया है। जाइसरणे समुप्पण्णे, मियापुत्ते महिड्डिए। सरइ पोराणियं जाइं, सामण्णं च पुराकयं ॥६॥ कठिन शब्दार्थ - महिड्डिए - महाऋद्धि वाला, सामण्णं - श्रामण्य-साधुपन को, पुराकयं - . पूर्वकृतां भावार्थ - जातिस्मरण ज्ञान, उत्पन्न होने पर महाऋद्धि वाला वह मृगापुत्र अपने पूर्व-जन्म को और पूर्व कृत - पूर्व-जन्म में पालन किये हुए साधुपन को स्मरण करने लगा। विवेचन - जातिस्मरण ज्ञान से मृगापुत्र को पूर्वजन्मों के अनुभवों का और मनुष्य भव में पालन किये हुए चारित्र का स्मरण हो गया। विषयभोगों से विरक्ति विसएसु अरज्जतो, रज्जंतो संजमम्मि य। अम्मा-पियरमुवागम्म, इमं वयण-मब्बवी॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - विसएसु - विषयों से, अरजंतो - विरक्त, संजमम्मि - संयम में, रजंतो - अनुरक्त, अम्मापियरं - माता पिता के, उवागम्म - पास आकर, वयणं - वचन, अब्बवी - कहा। भावार्थ - विषय-भोगों में आसक्ति नहीं रखता हुआ और संयम में अनुराग रखता हुआ मृगापुत्र माता-पिता के निकट आकर इस प्रकार वचन कहने लगा। विवेचन - मृगापुत्र को जातिस्मरण ज्ञान से पूर्वजन्मों की स्मृति एवं चारित्र पालन का स्मरण हो जाने के कारण कामभोगों से विरक्ति हो गयी और संयम में उसका मन लग गया अतः माता पिता के समीप आकर संयम ग्रहण की अनुमति-याचना करने लगे। मृगापुत्र द्वारा दीक्षा की आज्ञा मांगना सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, णरएसु दुक्खं च तिरिक्ख-जोणिसु। णिविण्णकामो मि महण्णवाओ, अणुजाणह पव्वइस्सामि अम्मो॥११॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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