Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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३५७ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
मृगापुत्रीय - नरकादि गतियों के दुःखों का वर्णन
कठिन शब्दार्थ - तण्हाकिलंतो - प्यास से व्याकुल होकर, धावतो - दौड़ता हुआ, पत्तो - प्राप्त हुआ, वेयरणिं - वैतरणी, णई - नदी, जलं - जल को, पाहिं ति - पीऊंगा, चिंतंतो - चिंतन करता हुआ, खुरधाराहिं - क्षुरधाराओं से, विवाइओ - चीरा गया। ____ भावार्थ - तृषा से अत्यन्त पीड़ित होकर जल पीऊँगा, इस प्रकार विचार करता हुआ अर्थात् जल पीने की इच्छा से दौड़ता हुआ मैं वैतरणी नदी को प्राप्त हुआ तो वहाँ क्षुरधाराओं से अर्थात् उस वैतरणी नदी की धारा उस्तरे की धार के समान अति तीक्ष्ण थी जिससे मैं विनाश को प्राप्त हुआ।
उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं। असिपत्तेहिं पडतेहिं, छिण्णपुव्वो अणेगसो॥६१॥
कठिन शब्दार्थ - उण्हाभित्ततो - गर्मी से संतप्त होकर, संपत्तो - प्राप्त हुआ, असिपत्तंअसि पत्र, महावणं - महावन, असिपत्तेहिं - असि पत्र - तलवार के समान तीखे पत्रों से, पडतेहिं - गिरने से, छिण्णपुव्वो - पूर्व में छेदा गया। . भावार्थ - उष्णता से घबराया हुआ मैं असिपत्र (तलवार) के समान तीक्ष्ण पत्तों वाले वृक्षों के महावन में प्राप्त हुआ और इच्छा करता था कि अब मुझे वृक्षों की छाया में शान्ति मिलेगी, किन्तु तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों के गिरने से मैं अनेक बार पूर्वजन्मों में छेदन किया गया हूँ।
मुग्गरेहिं मुसुंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहि य।
गयासं भग्गगत्तेहिं, पत्तं दुक्खं अणंतसो॥६२॥ . कठिन शब्दार्थ - मुग्गरेहिं - मुद्गरों से, मुसुंडीहिं - मुसुण्डियों, सूलेहिं - शूलों, मुसलेहि - मूसलों से, गयासं - गत आशा-सभी ओर से निराश हुए, भग्गगत्तेहिं - गात्रों को (शरीर को) भग्न कर दिया, पत्तं - पाया हूं, दुक्खं - दुःख।
भावार्थ - मुद्गरों से मुसंढी नामक, शस्त्र विशेष से त्रिशूलों से और मूसलों से मेरे गात्रों को भग्न कर दिया जिससे गत आशा - मेरे जीवन की आशा नष्ट हो गई इस प्रकार मैंने अनन्ती बार दुःख प्राप्त किया है।
खुरेहिं तिक्खधाराहिं, छुरियाहिं कप्पणीहि य। कप्पिओ फालिओ छिण्णो, उक्कित्तो य अणेगसो॥१३॥
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