Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
मृगापुत्रीय - नरकादि गतियों के दुःखों का वर्णन
कठिन शब्दार्थ - तिव्व चंडप्पगाढाओ - तीव्र, प्रचण्ड और प्रगाढ़, घोराओ - घोर, अइदुस्सहा - अत्यंत दुःसह, महब्भयाओ - महाभयोत्पादक, भीमाओ - भयंकर, नरकों में ।
रएस
*******
भावार्थ - विपाक की अपेक्षा तीव्र और उत्कृष्ट तथा लम्बी स्थिति वाली, घोर, अत्यन्त दुस्सह, महान् भय वाली, भयंकर -सुनने मात्र से डर पैदा करने वाली असाता वेदना मैंने नरकों में वेदन की है, भोगी है।
जारिसा माणुसे लोए, ताया! दीसंति वेयणा ।
इत्तो अनंतगुणिया, रसु दुक्ख वेयणा ॥ ७४ ॥
पिताजी,
कठिन शब्दार्थ - जारिसां - जैसी, माणुसे लोए मनुष्य लोक में, ताया दीसंति - देखी जाती है, इत्तो - इससे, अणंतगुणिया - अनन्त गुणी, दुक्खवेयणा - दुःख पूर्ण वेदनाएं।
भावार्थ - हे माता-पिताओ! मनुष्य लोक में जैसी वेदना दिखाई देती है नरकों में उससे अनन्तगुणा दुःखरूप असाता वेदना है।
-
सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेड्या मए । णिमेसंतरमित्तंपि, जं साया णत्थि वेयणा ॥ ७५ ॥
Jain Education International
३६१
***
www
कठिन शब्दार्थ - सव्वभवेसु
सभी भवों में, अस्साया असाता, णिमेसंतरमित्तंपि - साता (सुख) रूप, णत्थि - नहीं है ।
निमेष मात्र (एक पल ) भी, साया भावार्थ - सभी भवों में मैंने असाता वेदना वेदी है क्योंकि निमेष मात्र ( आँख मींच कर खोलने में जितना समय लगता है उतने समय के लिए) भी साता वेदना नहीं है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं (गाथा क्रं. ४६ से ७५ तक) में मृगापुत्र ने चारों गतियों में विशेषतः नरक गति में अपने द्वारा अनुभव किये गये रोमाञ्चक दुःखों का वर्णन किया है। यह वर्णन कपोल कल्पित नहीं है अपितु जातिस्मरणज्ञान से देखा ज -जाना हुआ है। इन दुःखों के वर्णन के द्वारा मृगापुत्र ने अपने माता-पिता को यह समझाने की कोशिश की है कि नरकादि गतियों के दुःखों के सामने संयम के दुःख कुछ भी नहीं है। और सभी दुःखों से छूटने का एक मात्र उपाय संयम हैं जो सर्वोत्कृष्ट आत्मिक सुख को प्रदान करने वाला है।
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org