Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 396
________________ ३६७ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ मृगापुत्रीय - मृगापुत्र का संयमी जीवन इहिं वित्तं च मित्ते य, पुत्तदारं च णायओ। रेणुयं व पडे लग्गं, णिद्धणित्ताण णिग्गओ॥८॥ कठिन शब्दार्थ - इडिं - ऋद्धि, वित्तं - धन, मित्ते - मित्र, पुत्तदारं - पुत्र, स्त्री को, णायओ - ज्ञातिजनों को, रेणुयं - धूल, पडे लग्गं - कपड़े में लगी हुई, णि णित्ताण - झाड़-झटक कर, णिग्गओ - निकल पड़ा। भावार्थ - कपड़े पर लगी हुई धूलवत् - धूल के समान राज्यऋद्धि, धन और मित्र तथा पुत्र-स्त्री और जाति तथा स्वजन सम्बन्धियों को छोड़ कर वह मृगापुत्र निकल गया, अर्थात् दीक्षित हो गया। पंचमहव्वयजुत्तो पंचहिं समिओ तिगुत्तिगुत्तो य। सभिंतर-बाहिरओ, तवोकम्मंसि उज्जुओ॥९॥ कठिन शब्दार्थ - पंचमहव्वयजुत्तो - पांच महाव्रतों से युक्त, पंचहिं समिओ - पांच समिति, तिगुत्तिगुत्तो - तीन गुप्ति से गुप्त, सब्भिंतरबाहिरओ - आभ्यंतर और बाह्य, तवोकम्मंसि - तपः कर्म में, उज्जुओ - उद्यत । भावार्थ - पाँच महाव्रतों से युक्त, पाँच समिति सहित और तीन गुप्तियों से गुप्त वह मृगापुत्र आभ्यन्तर और बाह्य तप संयम में उद्यत - सावधान हुआ। विवेचन - मृगापुत्र के जीव ने पूर्वभव में संयम का पालन किया था और पांच महाव्रत अंगीकार किये थे। वहाँ से काल करके देवलोक में गये। वहाँ से च्यव कर मनुष्य भव में आये। यहाँ संयम लेकर फिर पाँच महाव्रतों का पालन किया। पांच महाव्रत पालन रूप इतना लम्बा शासन काल भगवान् ऋषभदेव का है। इसलिये यह स्पष्ट होता है कि - मृगापुत्र भगवान् ऋषभदेव के शासनकाल में हुए थे। -णिम्ममो णिरहंकारो, णिस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - णिम्ममो - ममत्व रहित, णिरहंकारो - अहंकार रहित, णिस्संगोसंग (आसक्ति) रहित, चत्तगारवो - तीन गारवों (गों) का त्यागी, तसेसु - त्रसों, य - और, थावरेसु - स्थावरों, सव्वभूएसु - सभी जीवों पर, समो - समभाव। . भावार्थ - ममत्व-रहित, अहंकार-रहित, सर्व-संग-रहित और तीन गौं (गारव) को छोड़ देने वाला वह मृगापुत्र त्रस और स्थावर सभी प्राणियों पर समभाव रखने लगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430