Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 395
________________ ३६६ उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ का माता पिता द्वारा दीक्षा की आज्ञा मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता जहासुहं। अम्मापिऊहिं अणुण्णाओ, जहाइ उवहिं तओ॥५॥ कठिन शब्दार्थ - जहासुहं - जैसा तुम्हें सुख हो, अम्मापिऊहिं - माता पिता की, अणुण्णाओ - आज्ञा मिलने पर, उवहिं - उपधि का, जहाइ - त्याग करता है। भावार्थ - मृगापुत्र कहने लगा कि हे माता-पिताओ! मैं तो ऊपर बताई हुई मृगसरीखी चर्या का सेवन करूंगा। तब उसके माता-पिता कहने लगे कि हे पुत्र! जैसे तुम्हें. सुख हो वैसे ही करो। इस प्रकार माता-पिता की आज्ञा मिलने के पश्चात् मृगापुत्र उपधि अर्थात् द्रव्य उपधिवस्त्र-आभूषणादि और भाव उपधि-कषाय आदि को छोड़ने के लिए उद्यत हुआ। मिगचारियं चरिस्सामि, सव्वदुक्ख-विमोक्खणिं। तुब्भेहिं अब्भणुण्णाओ, गच्छ पुत्त! जहासुहं ॥८६॥ कठिन शब्दार्थ - सव्वदुक्खविमोक्खणिं - सभी दुःखों से विमुक्त कराने वाली, तुब्भेहि- आपकी, गच्छ - जाओ, पुत्त - हे पुत्र! . भावार्थ - मृगापुत्र फिर कहता है कि हे माता-पिताओ! आपकी आज्ञा मिलने पर मैं सभी दुःखों से मुक्त कराने वाली मृग सरीखी चर्या को अंगीकार करूँगा। तब उसके माता-पिता कहने लगे कि हे पुत्र! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो अर्थात् प्रव्रज्या-मृगचर्या के लिए जाओ अर्थात् संयम अंगीकार करो। मृगापुत्र का संयमी जीवन एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणित्ताण बहुविहं। .. ममत्तं छिंदइ ताहे, महाणागो व्व कंचुयं ॥७॥ कठिन शब्दार्थ - अणुमाणित्ताण - समझाकर, ममत्तं - ममत्व को, छिंदइ - तोड़ देता है, महाणागो व्व - महानाग (सर्प) के समान, कंचुयं - कांचली को। भावार्थ - इस प्रकार वह मृगापुत्र अनेक प्रकार से माता-पिता की आज्ञा लेकर उसी समय जिस प्रकार महानाग (सर्प) काँचली को छोड़ देता है उसी प्रकार ममत्व भाव को छोड़ने के लिए उद्यत हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430