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लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा ।
समो जिंदापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ६१ ॥
कठिन शब्दार्थ - लाभालाभे • लाभ और अलाभ में, सुहे सुख, दुक्खे- दुःख में, जीविए - जीवन, मरणे - मरण, जिंदापसंसासु - निन्दा और प्रशंसा में, माणावमाणओमान और अपमान में ।
उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन
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भावार्थ
वह मृगापुत्र लाभ और अलाभ में, सुख और दुःख में, जीवन में तथा मरण में निन्दा और प्रशंसा में तथा मान और अपमान में समभाव रखने लगे ।
गारवेसु कसाएसु, दंडसल्लभएसु य ।
यित्तो हाससोगाओ, अणियाणो अबंधणो ॥ ६२ ॥
कठिन शब्दार्थ - अणिस्सिओ - अनिश्रित - प्रतिबद्ध रहित, में, परलोए - परलोक में, वासी चंदणकप्पो - वासी चन्दन कल्प असणे- अशन, अणसणे
कठिन शब्दार्थ
गारवेसु - गारवों में, कसाएसु - कषायों में, दंडसल्लभएसु दण्ड, शल्य और भयों में, णियत्तो - निवृत्त, हाससोगाओ - हास्य तथा शोक से, अणियाणोअनिदान - निदान रहित, अबंधणो - बंधन रहित ।
भावार्थ - निदान रहित बन्धन रहित, मृगापुत्र तीन गारवों (गर्वों) से चार कषायों से तीन दंड से, तीन शल्य से, सात भय से और हास्य तथा शोक से निवृत्त हो गए । अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ ।
वासी चंदणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥ ६३ ॥
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अनशन ।
भावार्थ - वे मृगापुत्र इस लोक में अनिश्रित किसी प्रकार की आकांक्षा रहित था और परलोक में भी आकांक्षा रहित था और अशन आहारादि मिलने पर अथवा अनशन-आहारादि न मिलने पर हर्ष - शोक रहित था और वासी चन्दन के समान था अर्थात् वसूले से शरीर को काटने वाले पुरुष पर और शरीर पर चन्दन से पूजा (अर्चा) करने वाले दोनों पुरुषों पर समान भाव रखने वाले थे।
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इहं लोए - इस लोक
वासी चंदन के समान,
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में मृगापुत्र को इहलोक - परलोक अनिश्रित कहा है । इहलोक से अनिश्रित का मतलब है, इहलोक संबंधी यश-प्रतिष्ठा, आकांक्षा, कामना आदि किसी प्रकार के
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