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मृगापुत्रीय - नरकादि गतियों के दुःखों का वर्णन
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कुहाडफरसुमाईहिं, वहईहिं दुमो विव। कुट्टिओ फालिओ छिण्णो, तच्छिओ य अणंतसो॥६७॥
कठिन शब्दार्थ - कुहाडफरसुमाईहिं - कुल्हाड़ी और फरसे आदि से, वहईहिं - बढ़ई लोगों द्वारा, दुमो विव - वृक्ष की तरह, कुडिओ - कूटा गया, तच्छिओ - छीला गया।
भावार्थ - सुथारों का रूप धारण किये हुए परमाधार्मिक देवों द्वारा कुल्हाड़े, फरसे आदि से मेरे अनन्ती बार वृक्ष के समान टुकड़े कर दिये गये, मुझे फाड़ा गया, छेदन किया गया और चमड़ी उतार कर छील दिया गया।
चवेडमुट्टिमाइहिं, कुमारेहिं अयं विव। ताडिओ कुट्टिओ भिण्णो, चुण्णिओ य अणंतसो॥६॥
कठिन शब्दार्थ - चवेडमुट्ठिमाइहिं - चपत और मुक्के आदि से, कुमारेहिं - लुहारों के द्वारा, अयं विव - लोहे की भांति, ताडिओ - पीटा गया, चुण्णिओ - चूर्ण की तरह चूर चूर कर दिया गया। - भावार्थ - जिस प्रकार लोहार लोह को कूटते-पीटते हैं उसी प्रकार मैं भी थप्पड़ और मुष्टि आदि से अनन्ती बार पीटा गया कूटा गया भेदन किया गया और चूर्ण के समान बारीक पीस डाला गया। -- तत्ताई तंबलोहाई, तउयाई सीसगाणि य।
पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुभेरवं॥६६॥
कठिन शब्दार्थ - तत्ताई - तपाया हुआ गर्मागर्म, तंबलोहाइं - ताम्बा और लोहा, तउयाई - रांगा, सीसगाणि - सीसा, पाइओ - पिलाया गया, कलकलंताई - कलकलाता हुआ, आरसंतो - आक्रन्द करते हुए, सुभेरवं - भयंकर।
भावार्थ - प्यास से अत्यन्त पीड़ित होने पर जब मैंने जल की प्रार्थना की तब उन परमाधार्मिक देवों ने बहुत जोर से अरडाट शब्द करते हुए मुझे बलपूर्वक तपाया हुआ तथा कलकल शब्द करता हुआ ताम्बा और लोहा त्रपुष-कथीर और सीसा पिला दिया। ......
तुहं पियाई मंसाइं, खंडाई सोल्लगाणि य। खाविओ मि समंसाई, अग्गिवण्णाइ अणेगसो॥७॥
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