Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 385
________________ ३५६ उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkki अवसो लोहरहे जुत्तो, जलंते समिलाजुए। चोइओ तुत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ॥५७॥ कठिन शब्दार्थ - अवसो - विवश बना, लोहरहे - लोहे के रथ में, जुत्तो - जोता गया, तुत्तजुत्तेहिं - चाबुक और रस्सी से, जलंते - जलते हुए, समिलाजुए - समिला (जुए के छेदों में लगाने वाली कील) से युक्त जुए वाले, चोइओ - हांका गया, रोज्झो - रोझ। . ___भावार्थ - परवश बने हुए मुझे जलते हुए समिला युक्त जुआ वाले लोह के रथ में जोड़ा गया और चाबुक और जोतों से हाँका गया तथा लाठी आदि से पीटा गया एवं रोझ के समान भूमि पर गिराया गया। हुयासणे जलंतम्मि, चियासु महिसो विव। दहो पक्को य अवसो, पावकम्मेहिं पाविओ॥५६॥ कठिन शब्दार्थ - हुयासणे - आग में, जलंतम्मि - जलती हुई, चियासु - चिताओं में, महिसो विव - भैंसे की तरह, दहो - जलाया गया, पक्को - पकाया गया। भावार्थ - पापकर्मों से परवश बना हुआ पापी मैं परमाधार्मिक देवों द्वारा बनाई हुई ईंधन की चिताओं में जलती हुई हुताशन - अग्नि में भैंसे के समान जलाया गया और पकाया गया। बला संडासतुंडेहिं, लोहतुंडेहिं पक्खिहिं। विलुत्तो विलवंतोह, ढंकगिद्धेहिं अणंतसो॥५६॥ कठिन शब्दार्थ - बला - बलात् (जबरन), संडासतुंडेहिं - संडासी जैसी चोंच वाले, । लोहतुंडेहिं - लोहे के समान कठोर मुख वाले, पक्खिहिं - पक्षियों द्वारा, विलुत्तो - नोचा गया हूं, विलवंतोहं - विलाप करता हुआ मैं, ढंकगिद्धेहिं - ढंक और गृद्ध पक्षियों द्वारा।। ___भावार्थ - विलाप करता हुआ मैं बलपूर्वक संडासी के समान मुख वाले और लोह के समान कठोर मुख वाले पक्षिओं द्वारा और ढंक और गृद्ध पक्षिओं द्वारा अनन्ती बार छिन्न-भिन्न किया गया हूं। विवेचन - नरकों में पक्षी नहीं होते हैं। नारकी जीव ही स्वयं वैक्रिय शक्ति से पक्षी जैसे बन जाते हैं। तहाकिलंतो धावतो, पत्तो वेयरणिं णइं। जलं पाहिं त्ति चिंतंतो, खुरधाराहिं विवाइओ॥६०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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