________________
उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन
कठिन शब्दार्थ - कंदुकुंभीसु - कंदु कुम्भियों में, उड्डपाओ - ऊंचे पाँव, अहोसिरो अधो शिर करके, हुयासणे - हुताशन- अग्नि में, जलंतम्मि - जलती हुई, पक्कपुव्वो - पूर्व में पकाया गया, अणंतसो - अनंती बार, कंदंतो क्रन्दन करता हुआ ।
भावार्थ - कंदुकुम्भियों में (वैक्रिय द्वारा बनाये हुए पकाने के बरतन विशेषों में) ऊँचे पांव तथा नीचे शिर करके आक्रन्दन करता हुआ मैं जलती हुई हुताशन- अग्नि में अनन्ती बार पकाया गया हूँ।
३५४
महादवग्गिसंकासे, मरुम्मि वइवालुए।
कलंब - वालुयाए य, दट्टपुव्वो अनंतसो ॥ ५१ ॥
कठिन शब्दार्थ महादवग्गिसंकासे - महाभयंकर दावाग्नि के सदृश, मरुम्मि - मरु प्रदेश में, वइवालुए - वज्र वालुका वज्र के समान कर्कश कंकरीली रेत ) में, कलंबवालुयाएकदम्ब नदी की बालुका में, दढपुव्वों जलाया गया ।
भावार्थ महादावाग्नि के समान और मरुदेश की बालुका के समान नरक की वज्रबालुका में और कदम्ब नदी की बालुका में अनन्ती बार मैं जलाया गया हूँ। संतो कंदुकुंभी, उडुं बद्धो अबंधवो ।
-
-
करवत्तकरकयाईहिं, छिण्णपुव्वो अनंतसो ॥ ५२ ॥
कठिन शब्दार्थं - रसंतो - रोता चिल्लाता हुआ, उड्डुं - ऊर्ध्व, बद्धो - बांधा गया, अबंधवो बंधु बांधवों से रहित, करवत्तकरकयाईहिं करवत और क्रकच आदि शस्त्र
Jain Education International
-
-
विशेषों से, छिण्णपुव्वो - पहले छेदा गया हूं।
भावार्थ - दुःख के मारे चिल्लाते हुए बान्धव स्वजनादि की शरण एवं सहायता रह मुझे कंदुकुम्भियों के ऊपर अर्थात् नीचे कंदुकुम्भी रख कर ऊपर किसी वृक्षादि की शाखा में बांध दिया गया और फिर करवत और क्रकच आदि शस्त्र विशेषों से मैं अनन्ती बार पूर्वभवों में छेदन-भेदन किया गया हूँ।
अइतिक्खकंटगाइण्णे, तुंगे सिंबलिपायवें ।'
खेवियं पासबद्धेणं, कड्ढोकडाहिं दुक्करं ॥ ५३ ॥
कठिन शब्दार्थ - अइतिक्खकंटगाइणे - अत्यंत तीखे कांटों से व्याप्त, तुंगे - उत्तुंग -
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org