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मृगापुत्रीय - नरकादि गतियों के दुःखों का वर्णन
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कठिन शब्दार्थ - सारीरमाणसा - शारीरिक और मानसिक, वेयणाओ - वेदना, अणंतसो - अनन्तबार, सोढाओ - सहन की है, भीमाओ - भयंकर, असई - अनेक बार, दुक्खभयाणि - दुःखं और भयों का।
भावार्थ - हे माता पिताओ! मैंने अनन्त बार भयंकर शारीरिक और मानसिक वेदनाएँ सहन की है और अनेक बार दुःख और सात भयों का अनुभव किया है।
जरामरणकंतारे, चाउरते भयागरे। मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य॥४७॥
कठिन शब्दार्थ - जरामरणकंतारे - जरा और मृत्यु रूपी संसार कान्तार में, चाउरते - . चार गति रूप अंत वाले, भयागरे - भयंकर, जम्माणि - जन्म, मरणाणि - मरण। - भावार्थ - चार गति वाले भयंकर जरा-मरण रूपी कान्तार-अटवी में मैंने भयंकर जन्म और मरण के दुःख अनेक बार सहे हैं।
जहा इहं अगणी उण्हो, इत्तो अणंतगुणो तहिं। णरएसु वेयणा उण्हा, अस्साया वेइया मए॥४८॥
कठिन शब्दार्थ - अगणी - अग्नि, उण्हो - उष्ण, इत्तो - उससे, अणंतगुणो - अनन्त गुणा, उण्हो - उष्ण, णरएसु - नरकों में, वेयणा - वेदना, अस्साया - असाता,
मए - मैंने।
भावार्थ - यहाँ जैसी अग्नि उष्ण है उससे अनन्तगुणा उष्णता उन नरकों में हैं उस उष्णवेदना रूप असाता को मैंने अनन्ती बार वेदन की है, सहन की है।
विवेचन - नरकों में बादर अग्नि नहीं है किन्तु वहां की पृथ्वी का ही ऐसा स्पर्श है। जहा इहं इमं सीयं, इत्तो अणंतगुणं तहिं। णरएसु वेयणा सीया, अस्साया वेइया मए॥४६॥ कठिन शब्दार्थ - सीयं - शीत, अणंतगुणं - अनंत गुना, सीया - शीत।
भावार्थ - यहाँ जैसी यह शीत है इससे अनन्तगुणा अधिक शीत उन नरकों में हैं। उस शीत-वेदना रूप असाता को मैंने अनन्तीबार वेदन की है-सहन की है।
कंदंतो कंदुकुंभीसु, उड्डपाओ अहोसिरो। . हुयासणे जलंतम्मि, पक्कपुव्वो अणंतसो॥५०॥
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