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मृगापुत्रीय - विविध उपमाओं से संयम पालन की.....
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___ कठिन शब्दार्थ - तुलाए - तराजू से, तोलेउं - तोलना, मंदरो गिरी - मेरु पर्वत को, णिहुय - निश्चल, णीसंकं - निःशंक। ।
- भावार्थ - जिस प्रकार सुमेरु पर्वत को तराजु से तोलना कठिन है उसी प्रकार कामभोगों की अभिलाषा और शरीर के ममत्व एवं सम्यक्त्व के शंकादि दोषों से रहित होकर साधुपने का पालन करना बड़ा कठिन है।
जहा भुयाहि तरिउं, दुक्करो रयणायरो। तहा अणुवसंतेणं, दुक्करं दम-सायरो॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - भुयाहिं - भुजाओं से, तरिउं - तैरना, रयणायरो - रत्नाकर - समुद्र को, अणुवसंतेणं - अनुपशान्त - जिसका कषाय शांत नहीं हुआ है, दमसागरो - दम (संयम) के सागर को। ____ भावार्थ - जिस प्रकार रत्नाकर समुद्र को भुजाओं से तैरना कठिन है उसी प्रकार कषायों को उपशान्त किये बिना संयम रूपी समुद्र को तैरना बड़ा कठिन है। .
विवेचन - प्रस्तुत आठ गाथाओं (क्र. ३६ से. ४३ तक) में विविध उपमाओं द्वारा श्रमण धर्म के आचरण को अतीव दुष्कर सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। ये उपमाएं इस प्रकार हैं
१. लोहे का भार उठाने के समान। २. आकाशगंगा के स्रोत को तैरने के समान। ३. प्रवाह के विपरीत दिशा में तैरने के समान। ४. बालू के कवल के समान निःस्वाद। ५. खड्ग की धार पर चलने के समान। ६. भुजाओं से समुद्र को पार करने के समान। ७. सर्प की तरह एकाग्र दृष्टि से चलने के समान। ८. लोहे के जौ चबाने के समान। ६. प्रज्वलित अग्निशिखा को पीने के समान। १०. वस्त्र के थैले को हवा से भरने के समान। ११. मेरु पर्वत को तराजू से तौलने के समान। १२. भुजाओं से समुद्र को तैरने के समान।
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