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उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन
रूप हैं, अहो! आश्चर्य है कि यह सारा संसार ही दुःख रूप है, इस दुःखमय संसार में जीव अपने-अपने कर्मों के वश होकर नाना प्रकार के दुःख और क्लेशों को प्राप्त हो रहे हैं।
विवेचन - जन्म, जरा, व्याधि और मृत्यु आदि नाना प्रकार के दुःख इस संसार में हैं। ऐसे दुःखमय संसार में जीव क्लेश पाते हैं, यही आश्चर्य है।
.. संसार से निर्वेद खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पुत्तदारं च बंधवा। चइत्ताणं इमं देहं, गंतव्वमवसस्स मे॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - खेत्तं - क्षेत्र, वत्थु - वास्तु-घर, हिरण्णं - हिरण्य-स्वर्णादि, पुत्त - पुत्र, दारं - स्त्री, बंधवा - बंधुजन, चइत्ताणं - छोड़ कर, इमं - इस, देहं - शरीर को, गंतव्वं - चले जाना है, अवसस्स - अवश्य ही।
भावार्थ - क्षेत्र (खुली भूमि) वास्तु (घर मकान आदि) और हिरण्य-सोना-चांदी आदि पुत्र-स्त्री और बान्धव तथा इस शरीर को भी छोड़ कर मेरे इस जीव को परवश होकर अवश्य जाना पड़ेगा।
विषयभोगों का फल जह किंपागफलाणं, परिणामो ण सुंदरो। . . एवं भुत्ताणं भोगाणं, परिणामो ण सुंदरो॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - जह - जैसे, किंपागफलाणं - किम्पाक फलों का, परिणामो - परिणाम, ण सुंदरो - सुन्दर नहीं होता, भुत्ताणं - भोगे हुए, भोगाणं - भोगों का।। ___ भावार्थ - जिस प्रकार किंपाक वृक्ष के फलों का परिणाम सुन्दर नहीं होता, इसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुन्दर नहीं होता।
धर्म का पाथेय अद्धाणं जो महंतं तु, अपाहेज्जो पवज्जई।
गच्छंतो सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडिओ॥१६॥ .. कठिन शब्दार्थ - अद्धाणं - मार्ग का, महंतं - लम्बे, अपाहेजो - पाथेय लिए बिना
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