________________
३४८
उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
विवेचन - प्रस्तुत दोनों गाथाओं में माता पिता द्वारा परीषह विजय की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए साधु धर्म में कष्ट-सहिष्णुता की वृत्ति का उल्लेख किया गया है।
___ कापोत वृत्ति कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं बंभव्वयं घोरं, धारेउं अमहप्पणो॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - कावोया वित्ती - कापोत वृत्ति, केसलोओ - केशलोच, दारुणो - दारुण-कठिन, बंभव्वयं - ब्रह्मचर्य व्रत, घोरं - घोर, धारेउं - धारण करना, अमहप्पणो - अल्प सत्त्व वाले साधारण आत्मा के द्वारा।
भावार्थ - जो यह कापोतवृत्ति है अर्थात् जैसे कबूतर बिल्ली आदि से शंकित रह कर दाना चुगता है उसी प्रकार एषणादि के दोषों से शंकित रह कर आहारादि ग्रहण करना और केशों का लोच करना दारुण-कठिन है तथा अमहात्मा अर्थात् अजितेन्द्रिय एवं धैर्य-रहित आत्मा के लिए घोर ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करना अत्यन्त कठिन है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में श्रमण धर्म के अंतर्गत कापोतीवृत्ति, केशलोच, घोर ब्रह्मचर्य पातन को महासत्त्वशालियों के लिए भी अति दुष्कर बताया गया है। . कापोतीवृत्ति - कापोत (कबूतर) पक्षी अपना आहार ग्रहण करते समय शंकित-सावधान रहता है तथा चुग्गा दाना खा लेने के बाद अपने पास संचित नहीं रखता सिर्फ पेट भरने जितनी ही प्रवृत्ति करता है वैसे ही साधु भी भिक्षा ग्रहण करने - एषणा में कोई किसी प्रकार का दोष न लग जाए, इसी शंका-सावधानी से आहार ग्रहण में प्रवृत्त होता है। साधु भी उदर को पोषण देने जितना ही लेता है, आहार करने के पश्चात् कुछ भी संचित नहीं करता। यही कापोती वृत्ति है, जो कष्टदायी है।
सुहोइओ तुमं पुत्ता! सुकुमालो सुमज्जिओ। ण हुसि पभू तुमं पुत्ता! सामण्णमणुपालिया॥३५॥ -
कठिन शब्दार्थ - सुहोइओ - सुखोचित - सुख भोगने योग्य, सुकुमालो - सुकुमार, सुमजिओ - सुमज्जित-स्वच्छ, सामण्णं - श्रमण धर्म का, अणुपालिया - पालन करने में।
भावार्थ - हे पुत्र! तू सुखोचित है अर्थात् सुख भोगने के योग्य है सुकुमार है, सुस्नपित है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org