Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
मृगापुत्रीय - परीषह-विजय की कठिनाइयाँ
३४७ kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
कठिन शब्दार्थ - चउविहे वि - चारों प्रकार के, आहारे - आहार, राइभोयणवजणारात्रि भोजन वर्जन, सण्णिहिसंचओ - सन्निधि-संचय, वजेयव्वो - वर्जन करना।
भावार्थ - चार प्रकार का जो आहार है, रात्रि भोजन वर्जन-रात्रि में उनके भोजन का त्याग करना और सन्निधिसंचय - घी-गुड़ आदि का संचय करके रखने का त्याग करना अत्यन्त कठिन है।
विवेचन - माता-पिता ने मृगापुत्र से कहा कि अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पांच महाव्रतों का एवं छठे रात्रिभोजन त्याग व्रत का जीवन पर्यन्त तीन करण तीन योग से पालन करना अत्यंत दुष्कर है।
परीषह-विजय की कठिनाइयाँ - छुहा तण्हा य सीउण्हं, दंसमसग-वेयणा।
अक्कोसा दुक्खसेज्जा य, तणफासा-जल्लमेव य॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - छुहा - क्षुधा-भूख, तण्हा - तृषा-प्यास, सीउण्हं - शीत-उष्ण, दंसमसगवेयणा - दंश (डांस) मशक (मच्छरों) की वेदना, अक्कोसा - आक्रोश, दुक्खसेजादुःखरूप शय्या, तणफासा - तृण स्पर्श, जल्लमेव - मैल धारण। ___ भावार्थ - बाईस परीषहों को सहन करने की कठिनता बताते हैं - क्षुधा (भूख), प्यास और शीत और उष्ण, डांस और मच्छरों के काटने से होने वाली वेदना आक्रोश वचनों को सहन करना तथा दुःखकारी शय्या और तृणादि का स्पर्श, इसी प्रकार मैल परीषह, इन सभी परीषहों को समभावपूर्वक सहन करना बड़ा कठिन है।
तालणा तज्जणा चेव, वहबंधपरीसहा। दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - तालणा - ताड़ना, तजणा - तर्जना, वह - वध, बंध - बंधन, परीसहा - परीषह, दुक्खं - दुःख रूप, भिक्खायरिया - भिक्षाचर्या, जायणा - याचना, अलाभया - अलाभता।
भावार्थ - ताड़ना और तर्जना, वध-बन्धन का परीषह, भिक्षाचर्या तथा याचना और अलाभता (माँगने पर भी न मिलना) इत्यादि परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करना अत्यन्त कठिन है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org