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उत्तराध्ययन सूत्र - उन्नीसवां अध्ययन *************************kkakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk********* बिना दिये हुए, विवज्जणं - विवर्जन - त्याग करना, अणवज्जेसणिज्जस्स - निर्दोष और एषणीय वस्तु का, गिण्हणा - ग्रहण करना।
भावार्थ - बिना दिये हुए किसी भी पदार्थ को विवर्जन - नहीं लेना, यहाँ तक कि दाँतों को स्वच्छ करने के लिये तृण भी बिना आज्ञा नहीं लेना तथा निर्दोष और एषणीय वस्तु ग्रहण करना, इस तीसरे महाव्रत का पालन करना भी बड़ा दुष्कर है।
- चौथे महाव्रत की दुष्करता विरई अबंभचेरस्स, कामभोगरसण्णुणा। उग्गं महव्वयं बंभं, धारेयव्वं सुदुक्करं॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - विरई - विरति, अबंभचेरस्स - अब्रह्मचर्य की, कामभोग रसण्णुणाकामभोगों के रस के ज्ञाता के लिए, उग्गं - उग्र, महव्वयं - महाव्रत को, बंभं - ब्रह्मचर्य, धारेयव्वं - धारण करना, सुदुक्करं - अत्यंत दुष्कर है।
भावार्थ - कामभोग के रस को जानने वाले पुरुष के लिए मैथुन से सर्वथा निवृत्त होकर उग्र (कठोर) ब्रह्मचर्य रूप चतुर्थ महाव्रत को धारण करना अत्यन्त कठिन है।
पंचम महाव्रत की दुष्करता धणधण्णपेसवग्गेसु, परिग्गह-विवज्जणं। सव्वारंभपरिच्चाओ, णिम्ममत्तं सुदुक्करं॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - धणधण्णपेसवग्गेसु - धन धान्य प्रेष्य-दास वर्ग के प्रति, परिग्गह - परिग्रह, विवजणं - विवर्जन का, सव्वारंभ - सर्व प्रकार के आरंभ, परिच्चाओ - परित्याग, णिम्ममत्तं - निर्ममत्व।
भावार्थ - सभी आरम्भ का त्याग करना तथा परिग्रह का त्याग करना और धन-धान्य प्रेष्यवर्ग-नौकर-चाकरों का त्याग करना एवं इन सभी के ममत्वभाव से रहित होना, इस प्रकार परिग्रह-विरमण रूप पाँचवां महाव्रत अत्यन्त दुष्कर है।
छठे रात्रिभोजन की दुष्करता चउव्विहे वि आहारे, राइभोयण-वज्जणा। सण्णिहिसंचओ चेव, वज्जेयव्वो सुदुक्करं॥३१॥
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