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उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन ***********************AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA ____ कठिन शब्दार्थ - णमी - नमि राजा, णमेइ - झुका लिया, अप्पाणं - आत्मा को, चइकण - छोड़ कर, गेहं - राजभवन को, वइदेही - विदेह के राजा, सामण्णे - श्रमण धर्म में, परजुवडिओ - भलीभांति स्थिर किया।
भावार्थ - साक्षात् शक्रेन्द्र से प्रेरित हुए नमिराजा ने अपनी आत्मा को नम्र बनाया-विनीत बनाया तथा घर और विदेह देश के स्वामी राज्य को छोड़ कर संयम अंगीकार किया और मोक्ष को प्राप्त किया।
विवेचन - नमिराजर्षि का विस्तृत वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के ‘नमिप्रव्रज्या' नामक नौवें अध्ययन में किया आ चुका है।
१३-१५ करकण्डू आदि प्रत्येक बुद्ध करकंडू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। णमीराया विदेहेसु, गंधारेसु य णग्गई॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - करकंडू - करकण्डु राजा, कलिंगेसु - कलिंग में, पंचालेसु - पांचाल में, दुम्मुहो - द्विमुख, णमीराया - नमिराज, विदेहेसु - विदेह में, गंधारेसु - गान्धार देश में, णग्गई - नग्गति राजा।
भावार्थ - कलिंग देश में करकंडू राजा और पंचाल देश में द्विमुख राजा, विदेह देश में नमिराजा और गान्धार देश में नगगति राजा हुआ। इन सब राजाओं ने राज्य-वैभव छोड़ कर दीक्षा ली और संयम का पालन कर मोक्ष प्राप्त किया।
एए णरिंदवसभा, णिक्खंता जिणसासणे।
पुत्ते रज्जे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुवट्ठिया॥४७॥ ___ कठिन शब्दार्थ - परिंदवसभा - राजाओं में वृषभ के समान श्रेष्ठ, एए - ये, णिक्खंताप्रव्रजित हुए, जिणसासणे - जिनशासन में, पुत्ते - पुत्र को, रज्जे - राज्य में, ठवित्ताणं - स्थापित करके, सामण्णे - श्रमण धर्म में, पज्जुवदिया - सम्यक् प्रकार से स्थिर हो गये।
भावार्थ - राजाओं में वृषभ के समान श्रेष्ठ ये सभी राजा अपना राज्य पुत्रों को सौंप कर जिन-शासन में दीक्षित हुए और श्रमण वृत्ति का सम्यक् पालन कर के मोक्ष को प्राप्त हुए। .
विवेचन - राजाओं में प्रमुख कलिंगदेश में करकण्डु, पांचाल देश में द्विमुख, विदेह में
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