________________
३२६
उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk पद पाया। संसार से विरक्त होकर दीक्षा ली। अंत में सर्व कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
१०. जय चक्रवर्ती अण्णिओ रायसहस्सेहिं, सुपरिच्चाई दमं चरे। जय णामो जिणक्खायं, पत्तो गइमणुत्तरं॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - अण्णिओ - युक्त हो कर, रायसहस्सेहिं - हजार राजाओं से, सुपरिच्चाई - श्रेष्ठ त्यागी, दमं - दम (संयम) का, चरे - आचरण किया, जयणामो - जय नामक, जिणक्खायं - जिनभाषित। . ____भावार्थ - हजारों राजाओं के साथ जय नाम के ग्यारहवें चक्रवर्ती ने राज्य-वैभव और . काम-भोगों का त्याग करके जिनेन्द्र देव द्वारा कहे हुए तप-संयम एवं श्रुत-चारित्र धर्म का सेवन किया और प्रधान गति-मोक्ष को प्राप्त किया।
- विवेचन - राजगृह नगर के समुद्रविजय राजा की वप्रा रानी की कुक्षि से जय नामक चक्रवर्ती का जन्म हुआ। कालान्तर में चौदह रत्न उत्पन्न हुए फिर षट्खण्ड साध कर उन्होंने चक्रवर्ती पद पाया। संसार से विरक्त होकर दीक्षा ग्रहण की तथा रत्नत्रय की सम्यक् साधना कर सर्व कर्मों का क्षय कर सिद्धि प्राप्त की।
उपरोक्त दस चक्रवर्ती मोक्ष में गये हैं। आठवां चक्रवर्ती सुभूम और बारहवां चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त - इन दोनों ने दीक्षा नहीं ली। दोनों मरकर सातवीं नरक में उत्पन्न हुए।
११. दशार्णभद्र राजा दसण्णरज्जं मुदियं, चइत्ता णं मुणी चरे। दसण्णभद्दो णिक्खंतो, सक्खं सक्केण चोइओ॥४४॥
कठिन शब्दार्थ - दसण्णरजं - दशार्ण देश का राज्य, मुइयं - प्रमुदित, दसण्णभहो - दशार्णभद्र राजा, णिक्खंतो - प्रव्रज्या ग्रहण की, सक्खं - साक्षात्, सक्केण - शक्रेन्द्र द्वारा, चोइओ - प्रेरित होकर।
भावार्थ - साक्षात् शक्रेन्द्र से, प्रेरित किया हुआ दशार्णभद्र राजा उपद्रव रहित एवं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org