Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
६कुंथुनाथ इक्खागरायवसभो, कुंथू णाम णरीसरो। विक्खायकित्ती भगवं, पत्तो गइमणुत्तरं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - इक्खागरायवसभो - इक्ष्वाकु कुल के राजाओं में श्रेष्ठ, विक्खायकित्ती - विख्यात - विशद कीर्तिवाला।
भावार्थ - इक्ष्वाकु वंश के राजाओं में श्रेष्ठ, विख्यात कीर्ति वाले भगवान् कुंथु नामक नरेश्वर-चक्रवर्ती दीक्षा अंगीकार करके प्रधान गति-मोक्ष को प्राप्त हुए। ये कुन्थुनाथ भगवान् इस वर्तमान अवसर्पिणी काल में सतरहवें तीर्थंकर और छठे चक्रवर्ती हुए थे।
विवेचन - हस्तिनापुर के राजा सूर की रानी श्रीदेवी की कुक्षि से कुंथुनाथ का जन्म हुआ। योग्यवय में पिता ने कुंथुनाथ को राज्य सौंपकर दीक्षा ली। तत्पश्चात् कुंथुनाथ छह खण्डों के अधिपति चक्रवर्ती सम्राट बने। दीक्षा लेकर केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त कर तीर्थ स्थापना . की। अनेक लोगों को प्रतिबोधित करते हुए सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। . . .
अरनाथ सागरंतं चइत्ता णं, भरहं णरवरीसरो। . अरो य अरयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - अरो - अरनाथ ने, अरयं पत्तो - अरजस्कता प्राप्त करके, णरवरीसरोनरेश्वरों में श्रेष्ठ।
भावार्थ - सागरपर्यंत भारतवर्ष का राज्य छोड़ कर अर नामक नरवरेश्वर - चक्रवर्ती कर्मरज के अभाव को प्राप्त हुए और सर्वश्रेष्ठ गति (मोक्ष) प्राप्त हुए। ये अरनाथ भगवान् इस वर्तमान अवसर्पिणी काल में अठारहवें तीर्थंकर तथा सातवें चक्रवर्ती हुए हैं। ___ विवेचन - हस्तिनापुर के सुदर्शन राजा की श्रीदेवी रानी की कुक्षि से अरनाथ का पुत्र रूप में जन्म हुआ। पिता ने योग्य वय में अरनाथे को राज्य सौंपा। कालान्तर में अरनाथ चक्रवर्ती बने। तत्पश्चात् दीक्षा ग्रहण की एवं तीर्थकर पद प्राप्त किया और अंत में सभी कर्मों का क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
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