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संयतीय - शांतिनाथ
३२३ kidaktarikaakakakakakakakakakakakakakakkakkkkkkkkkkkkkkkkkkkk सूत्र के चौथे ठाणे में चार प्रकार की अन्तक्रिया का वर्णन किया है। अन्तक्रिया का अर्थ है :सब कर्मों का अन्त कर उसी भव में मोक्ष प्राप्त करना। वहाँ अन्तक्रिया करने वाले चार महापुरुषों के नाम दिये हैं - यथा - १ भरत चक्रवर्ती २. गजसुकुमाल ३. सनत्कुमार चक्रवर्ती और ४. मरुदेवी माता। इससे स्पष्ट होता है कि - दस चक्रवर्ती मोक्ष में गये हैं।
. . ५ शांतिनाथ चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिडिओ। संती संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं॥३८॥
कठिन शब्दार्थ - संती - शांतिनाथ, संतिकरे - शांति करने वाले, लोए - लोक में, पत्तो - प्राप्त हुए, गई - गति को, अणुत्तरं - अनुत्तर-प्रधान। ____भावार्थ - महासमृद्धिशाली लोक में शान्ति करके वाले शान्तिनाथ चक्रवर्ती ने भारत वर्ष के राज्य का त्याग करके दीक्षा अंगीकार की और फिर वे अनुत्तर गति-प्रधान गति (मोक्ष) प्राप्त हुए। ये शान्तिनाथ भगवान् इस वर्तमान अवसर्पिणी में सोलहवें तीर्थंकर और पांचवें चक्रवर्ती थे। ___ विवेचन - शरण में आए कबूतर को अभयदान देने के लिए अपने जीवन को न्यौछावर करने वाले मेघरथ राजा के जीव ने शुद्ध चारित्र की आराधना की और समाधि मरण पूर्वक काल करके सर्वार्थसिद्ध विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए। वहां से च्यव कर मेघरथ का जीव जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनापुर नगर के राजा विश्वसेन की पत्नी अचिरा रानी की कुक्षि से पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। जब ये गर्भ में थे तब सभी प्रदेशों में महामारी फैली हुई थी, माता द्वारा शांत दृष्टि से देखने से महामारी शांत हो गई। इसलिए इनका नाम 'शांतिनाथ' रखा गया। यौवनवय में शांतिनाथ ने चक्रवर्ती पदवी पाई। षट् खण्ड पर राज्य किया। सभी कामभोगों का त्याग कर दीक्षा ली। तीर्थ की स्थापना की और कई जीवों को प्रतिबोध दे कर केवलज्ञान पाया। २५ हजार वर्षों तक साधु पर्याय का पालन कर अंत में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
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