Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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संयतीय - सनत्कुमार चक्रवर्ती
३२१ ********************************************************* दीक्षा अंगीकार की। अजितकुमार ने भी तीर्थ प्रवर्तन के समय अपना राज्य सगर को सौंप कर स्वयं ने दीक्षा ग्रहण की। सगर चक्रवर्ती बना। उसके साठ हजार पुत्र हुए। अपने पुत्रों की मृत्यु की घटना सुन कर सगर चक्रवर्ती को वैराग्य हुआ। उसने स्वयं भगवान् अजितनाथ के पास दीक्षा ग्रहण की। तप संयम की आराधना कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए।
३. मघवा चक्रवती चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिडिओ। पव्वज्जमब्भुवगओ, मघवं णाम महाजसो॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - चक्कवट्टी - चक्रवर्ती, महिडिओ - महान् ऋद्धि सम्पन्न, पव्वज्जमब्भुवगओ - प्रव्रज्या अंगीकार की, महाजसो - महान् यशस्वी। .
भावार्थ - महायशस्वी और महासमृद्धिशाली मघवा नाम के तीसरे चक्रवर्ती ने भारतवर्ष के राज्य को छोड़ कर प्रव्रज्या-दीक्षा अंगीकार की और तप संयम का पालन करके मोक्ष गये। - विवेचन - भरत क्षेत्र की श्रावस्ती नगरी में समुद्र विजय राजा की भद्रादेवी की कुक्षि से मघवा का जन्म हुआ। षट् खण्ड साध कर चक्रवर्ती बने। संसार से विरक्ति हुई। पुत्र को राज्य सौंप कर दीक्षा ली और मोक्ष में गये।
सनत्कुमार चक्रवती सणंकुमारो मणुस्सिंदो, चक्कवट्टी महिडिओ। पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे॥३७॥
कठिन शब्दार्थ - सणंकुमारो - सनत्कुमार, मणुस्सिंदो - मनुष्यों में इन्द्र के समान पुत्तं - पुत्र को, रज्जे - राज्य पर, ठवेऊणं - स्थापित करके, तवं - तप का, घरे - · आचरण किया।
भावार्थ - मनुष्यों में इन्द्र के समान महा ऋद्धिशाली एवं रूप-सम्पन्न, सनत्कुमार नामक चौथे चक्रवर्ती राजा (नरेन्द्र) ने भी पुत्र को, राज्य-सिंहासन पर स्थापित कर संयम युक्त तप का आचरण किया और मोक्ष प्राप्त किया।
विवेचन - कुरु जांगल देश के हस्तिनापुर नगर में अश्वसेन राजा की रानी सहदेवी की
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