Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 358
________________ संयतीय - उदायन नृप ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ ३२६ नमिराज और गांधार में नग्गति राजा हुए। इन चारों राजाओं ने किसी निमित्त से बोध पा कर संसार से विरक्ति पायी और प्रत्येक बुद्ध कहलाए। चारों ने दीक्षा ली और एक ही समय में सिद्ध हुए। इसमें से नमिराजर्षि का वर्णन तो पूर्व की गाथा में आ चुका है। शेष तीन की कथा नमि प्रव्रज्या अध्ययन की बृहद् वृत्ति में मिलती है। तदनुसार करकण्डू राजा एक बैल (सांड) की अवस्था देखकर, द्विमुख राजा इन्द्रध्वज को देखकर और नग्गति राजा आम्रवृक्ष को देखकर .. संसार से विरक्त हुए। इस प्रकार ये चारों ही प्रत्येक बुद्ध महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में १७ सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले देव हुए। वहां से च्यव कर एक समय में ही मुनि दीक्षा, ली और एक ही साथ मोक्ष में गये (उत्तराध्ययन सूत्र की प्रियदर्शिनी टीका भा. ३ पृ. ३१० से ३६६ के अनुसार) . १६ उदायन नृप सोवीरराय-वसभो, चइत्ताणं मुणी चरे। .. उदायणो पव्वइओ, पत्तो गइमणुत्तरं॥४८॥ कठिन शब्दार्थ - सोवीरराय वसभो - सौवीर राजाओं में वृषभ के समान महान्, उदायणो - उदायन, मुणी चरे - मुनि धर्म का आचरण किया। भावार्थ - सौवीर देश के राजाओं में श्रेष्ठ, उदायन राजा ने राज्य-वैभव छोड़ कर, दीक्षा ग्रहण की और मुनि होकर संयम का सम्यक् पालन किया जिससे प्रधान गति (मोक्ष) को प्राप्त किया। . विवेचन - उदायन, भरत क्षेत्र के सौवीर देश का प्रमुख राजा था। वीतभय नगर उसके राज्य की राजधानी थी। वह सिन्धु-सौवीर आदि १६ जनपदों का तथा वीतभय आदि ३६३ नगरों का अधिपति और दस मुकुट बद्ध राजाओं का अधीश्वर था। _उदायन की रानी प्रभावती समाधि भावों में काल कर देवलोक में उत्पन्न हुई। प्रभावती ने देवरूप में आकर राजा उदायन को प्रतिबोध दिया जिससे राजा ने जैन धर्म और श्रावक के व्रत ग्रहण किये। .. एक दिन उदायन राजा पौषधशाला में पौषधव्रत में थे। पिछली रात्रि उनके मन में यह शुभ विचार उत्पन्न हुआ कि अगर भगवान् महावीर स्वामी यहां पधारे तो मैं उनके पास दीक्षा ग्रहण करूं। सर्वज्ञ सर्वदर्शी प्रभु ने उदायन के विचार को जाना और कौशाम्बी से विहार कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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