Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मृगापुत्रीय - मुनिदर्शन
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कठिन शब्दार्थ - तेसिं- उनके, पुत्ते पुत्र, मियापुत्ते - मृगापुत्र, विस्सुए - विश्रुतप्रसिद्ध, बलसिरी - बलश्री, अम्मापिऊण - माता पिता को, दइए - दयित- प्रिय, जुवरायायुवराज, दमीसरे - दमीश्वर-शत्रुओं को दमन करने वाले का अधिपति ।
भावार्थ - उनके बलश्री नाम का पुत्र था किन्तु लोगों में वह मृगापुत्र के नाम से विश्रुत - विख्यात था। वह माता-पिता को बड़ा प्रिय था। वह युवराज और दमीश्वर था अर्थात् उद्धत पुरुषों का दमन करने वाले राजाओं का स्वामी था । यह अर्थ वर्तमान काल की अपेक्षा से किया गया है। भविष्यत् काल की अपेक्षा 'दमीश्वर' शब्द का अर्थ है - इन्द्रियों का दमन करने वाले महात्माओं में श्रेष्ठ । ऐसा वह मृगापुत्र था।
णंद सो उपासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवो दोगुंदगो चेव, णिच्चं मुइयमाणसो ॥३॥ कठिन शब्दार्थ : णंदणे - नन्दन, पासाए प्रासाद ( भवन - महल), कीलए - क्रीड़ा करता था, सह साथ, इत्थिहिं - स्त्रियों के, देवो - देव, दोगुंदगो - दोगुंदक, णिच्चं . नित्य, मुइयमाणसो - मुदित मानस - प्रसन्नचित्त वाला ।
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भावार्थ - वह मृगापुत्र नामक राजकुमार नंदन वन के समान आनंददायक प्रासाद (भवन) में स्त्रियों के साथ सदा मुदितमानस - प्रसन्न चित्त वाला होकर दोगुंदक देव के समान अर्थात् इन्द्र के गुरुस्थानीय त्रायस्त्रिंश जाति के देव के समान क्रीड़ा करता था ।
मुनिदर्शन
मणिरयणकोट्टिमतले पासायालोयणट्ठिओ ।
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आलोएइ णगरस्स, चउक्कत्तियचच्चरे ॥४॥
. कठिन शब्दार्थ मणिरयणको ट्टिमतले मणि रत्न जटित आंगन वाले, पासायालोयट्ठिओ प्रासाद के आलोकन (गवाक्ष ) में बैठा हुआ, आलोएड़ - देख रहा था, णगरस्स नगर के, क- त्तिय चच्चरे चउक्कचौराहों, तिराहों और चौहट्टों को ।
भावार्थ - जिसके आंगन में मणि और रत्न कूटे हुए थे ऐसे प्रासाद (महल) के झरोखे में बैठा हुआ वह राजकुमार एक समय उस सुग्रीव नगर के चतुष्क (जहाँ चार मार्गों का संगम हो) त्रिक (तीन मार्गों का मिलन स्थान) और चत्वर (अनेक मार्गों के मिलने का स्थान) देख रहा था।
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