Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. संयतीय - महाबल राजर्षि **************************************************************
कठिन शब्दार्थ - विजओ राया - विजय राजा, अणट्ठाकित्ति - अनष्ट कीर्तिःअविनाशी-अमर कीर्ति वाला, महाजसो - महायशस्वी, गुणसमिद्धं - गुण समृद्ध, पयहितु - छोड़ कर।
भावार्थ - इसी प्रकार आनष्टा अकीर्ति - जिसकी अकीर्ति सब तरफ से नष्ट हो चुकी है अतएव निर्मल कीर्ति वाले महायशस्वी दूसरे बलदेव, विजय नामक राजा ने गुणसमृद्ध-महा ऋद्धिशाली, राज्य को छोड़ कर दीक्षा ली और मोक्ष प्राप्त किया।
विवेचन - द्वारावती के ब्रह्मराज की रानी सुभद्रा की कुक्षि से विजय नामक दूसरे बलदेव का जन्म हुआ। छोटे भाई द्विपृष्ठ वासुदेव ने विजय की सहायता से तीन खण्ड का राज्य जीता। ७२ लाख की आयु पूर्ण करने पर जब द्विपृष्ठ की मृत्यु हुई तब विजय बलदेव ने भागवती दीक्षा अंगीकार की, केवलज्ञान प्राप्त किया और ७५ लाख वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर मोक्ष प्राप्त किया।
. ११. महाबल राजर्षि - तहेवुग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेण चेयसा।
महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसा सिरिं॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - तहेव - इसी प्रकार, उग्गं - उग्र, तवं - तप, किच्चा - करके, अव्वक्खित्तेण - अव्याक्षिप्त-अव्यग्र-एकाग्र, चेयसा - चित्त से, महब्बलो- महाबल, रायरिसी- राजर्षि, आदाय - ग्रहण करके, सिरसा - मस्तक से, सिर देकर, सिरिं - श्रीमोक्ष लक्ष्मी को, चारित्र रूपी लक्ष्मी को।
भावार्थ - इसी प्रकार महाबल नाम के राजर्षि ने एकाग्र चित्त से उग्र तप करके शिर से अर्थात् अपना मस्तक देकर-अपने शरीर की उपेक्षा की और सर्वश्रेष्ठ केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी को प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया अथवा सम्पूर्ण लोक के मस्तक पर स्थित मोक्षश्री को प्राप्त किया। .
विवेचन - यहाँ पर 'महाबल मलया चारित्र' वाले महाबल समझना चाहिए। महाबल मलया चारित्र की चौपाई वाली पुस्तक की प्रस्तावना में इस गाथा को उद्धृत किया गया है। ये महाबल उसी भव में संयम अंगीकार करके मोक्ष में गए हैं। ऐसा कथा में वर्णन आता है।
नेमिचन्द्रीया लघुवृत्ति में बताया है - महाबल संबंधी - एष व्याख्याप्रज्ञप्ति भणितो
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