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संयतीय - संजय राजर्षि द्वारा उत्तर
३१३ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk आपका गोत्र कौन-सा है? और किसलिए आप मा हण-माहन बने हैं? आपके गुरु कौन हैं, किस प्रकार आप उन आचार्यादि गुरुजनों की सेवा करते हैं? और किस प्रकार विनयवान् कहलाते हैं।
विवेचन - मन, वचन और काया से किसी भी जीव के मारने के भाव जिसमें नहीं हैं, उसे माहन कहते हैं अर्थात् किसी भी जीव को मत मारो ‘मा-मत-हन-मारो' - इस प्रकार जो 'मत मारो, मत मारो' का उपदेश देता है वह 'माहन' कहलाता है। 'माहन' शब्द साधु और श्रावक दोनों अर्थ में आता है। इस गाथा में 'माहन' शब्द 'साधु' अर्थ में आया है।
क्षत्रिय मुनि ने संजयराजर्षि को देख कर उनके ज्ञान की परीक्षा करने हेतु निम्न पाँच परिचयात्मक प्रश्न पूछे - मुने! १-२. तुम्हारा नाम और गोत्र क्या है? ३. किस प्रयोजन से तुम प्रव्रजित हुए हो ४. आचार्यों की परिचर्या कैसे करते हो? ५. तुम विनीत कैसे कहलाते हो?
संजय राजर्षि द्वारा उत्तर rai नहा गोत्तेण गोयमो। संजओ णाम णामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो। गद्दभाली ममायरिया, विज्जाचरण-पारगा॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - ममायरिया - मेरे आचार्य, विजा-चरण-पारगा - विद्या (ज्ञान) और चरण (चारित्र) में पारंगत।। - भावार्थ - संजयमुनि क्षत्रिय मुनि के प्रश्नों का उत्तर देते हैं कि संजय मेरा नाम है, गौतम मेरा गोत्र हैं और विद्या (ज्ञान) और चारित्र के पारगामी गर्दभाली मेरे आचार्य हैं। ज्ञान और चारित्र की प्राप्ति के लिए मैंने दीक्षा अंगीकार की है, जिसका अंतिम फल मोक्ष है। मैं अपने गुरुजनों की सेवा करता हूँ और उन्हीं का उपदेश सुनने से तथा उसी के अनुसार आचरण करने से मुझे विनय-धर्म की प्राप्ति हुई है।
विवेचन - पूर्व गाथा में पूछे गये पांच प्रश्नों में से दो प्रश्नों का उत्तर तो इस गाथा में स्पष्ट बताया है शेष तीन प्रश्नों का उत्तर उत्तरार्द्ध से इस प्रकार ध्वनित होता है - ..
१. मेरा नाम संजय है २. मेरा गोत्र गौतम है ३. मुक्ति के लिए ही मुनि बना हूं ४. आचार्य गर्दभालि के आदेशानुसार वर्तन कर मैं गुरुओं की सेवा करता हूं ५. विद्या और चारित्र की विनयाचार पूर्वक ग्रहण-आसेवन शिक्षा लेने से तथा आचार्यों के आदेश का पालन करने से मैं विनीत कहलाता हूं।
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