Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विवेचन - क्रियावादी आदि एकान्तवादियों का कथन कपट पूर्ण मिथ्या एवं निरर्थक है अतः इनसे बच कर रहो ।
सव्वे ए विझ्या मज्झं, मिच्छादिट्ठी अणारिया ।
विज्जमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥ २७ ॥
जान लिये गये हैं, मज्झं - मेरे द्वारा, मिच्छादिट्ठी
कठिन शब्दार्थ विइया मिथ्यादृष्टि, अणारिया अनार्य, विज्जमाणे विद्यमान होने से, परे लोए - परलोक,
अप्पगं - अपनी आत्मा को ।
उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन
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भावार्थ
विद्यमान हैं और इसी से मैं अपनी आत्मा को सम्यक् प्रकार से जानता हूँ।
ये सब वादी लोग मेरे जाने हुए हैं। ये सब मिथ्यादृष्टि अनार्य हैं। परलोक
विवेचन - क्षत्रिय महर्षि के कहने का आशय यह है कि मैं आत्मा को कथञ्चित् (द्रव्य दृष्टि से ) नित्य और कथञ्चित् (पर्याय दृष्टि से ) अनित्य मानता हूं। परलोक से आया हुआ होने से, परलोक का अस्तित्व होने से मैं अपनी और दूसरों की आत्मा को भलीभांति जानता हूं। अहमासी महापाणे, जुइमं वरिस सओवमे ।
जा सा पाली महापाली, दिव्वा वरिस सओवमा ॥ २८ ॥
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कठिन शब्दार्थ - अहं मैं, आसी था, महापा महाप्राण विमान में, जुइमं द्युतिमान, वरिस सओवमे वर्ष शतोपम आयु वाला, पाली सागरोपम, दिव्वा - दिव्य ।
पल्योपम, महापाली
भावार्थ - क्षत्रिय राजर्षि कहते हैं कि मैं ब्रह्म देवलोक के महाप्राण नामक विमान में ति देवों की कान्ति से युक्त देव था और यहाँ की सौ वर्ष आयु के साथ जिसकी उपमा दी जाती है। ऐसी देवों की जो पल्योपम और सागरोपम की स्थिति कही जाती है, वैसी वर्ष शतोपमा वाली मेरी आयु थी अर्थात् जैसे इस समय इस लोक में सौ वर्ष की विशिष्ट आयु मानी गई है, उसी प्रकार उस देवलोक में मेरी भी उत्कृष्ट आयु भी अर्थात् मेरी आयु दश सागरोपम परिमाण थी।
विवेचन - क्षत्रियमुनि कहते हैं कि वैमानिक देवों की स्थिति पाली (पल्योपम प्रमाण ) और महापाली (सागरोपम प्रमाण) होती है किंतु मैंने ब्रह्मलोक नामक देवलोक के महाप्राण विमान में महापाली (दश सागरोपम की आयु) दिव्य स्थिति का भोग किया है।
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