Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन
भावार्थ - इसके बाद घोड़े पर बैठे हुए उस राजा ने शीघ्र वहाँ आकर अपने बाणों से विद्ध होकर मरे हुए हिरणों को देखा और इतने ही में वहाँ ध्यानस्थ बैठे हुए महात्मा को भी देखा । अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाहओ । मए उ मंदपुण्णेणं, रसगिद्धेण घंतुणा ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - संभंतो- संभ्रान्त भयभीत, मणा मनाक् व्यर्थ ही, आहओ आहत (पीड़ित ) किया है, मंदपुण्णेण - मंद पुण्य से, रसगिद्धेण - रसलोलुप, घंतुणा जीवघातक ।
भावार्थ - इसके बाद मुनिराज पर दृष्टि पड़ते ही राजा अत्यन्त भयभीत हुआ मन में अपने आपको धिक्कारता हुआ विचारने लगा कि मेरे बाण से विद्ध होकर यह मृग दौड़ कर मुनिराज के पास आया है, इसलिए मंदभागी रसासक्त और निरपराध जीवों की हिंसा करने वाले मैंने इस मृग को मार कर मनाक् - अल्प स्वार्थ के लिए मुनिराज के चित्त को दुःखित किया है । अथवा भयभ्रान्त बन कर राजा इस प्रकार विचार करने लगा कि मैं अवश्य मंदभागी हूँ। शिकार खेलने में अन्ध बने हुए मुझे इतना भी ध्यान नहीं रहा कि यहाँ मुनिराज बैठे हुए हैं। मृग पर चलाया हुआ मेरा बाण यदि ध्यानस्थ मुनिराज को लग जाता तो कैसा अनर्थ हो जाता? इत्यादि विचारों से राजा अत्यन्त भयभ्रान्त बन गया ।
मुनि से क्षमायाचना
३०६
आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो णिवो । विणण वंदए पाए, भगवं एत्थ मे खमे ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - आसं घोड़े को, विसज्जइत्ताणं - छोड़ कर, णिवो नृप विणएण - विनय से, वंदए - वंदन किया, पाए - चरणों में, भगवं - हे भगवन्! एत्थ इस अपराध के विषय में, खमे क्षमा करें।
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भावार्थ इसके बाद वह नृप - राजा अश्व-घोड़े को छोड़ कर अर्थात् घोड़े से उतर कर मुनिराज के पैरों में बिनय पूर्वक वंदना - नमस्कार करता हुआ कहने लगा कि, हे भगवन्! इस शिकार करने में मेरा जो अपराध हुआ है उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए ।
विवेचन - शिकार के लिए केसर उद्यान में गया संयति राजा एक-एक करके भयभीत
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