Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
संजय राजा का मृगयार्थ गमनं कंपिल्ले णयरे राया, उदिण्ण-बलवाहणे। णामेणं संजओ णाम, मिग्गवं उवणिग्गए॥१॥
कठिन शब्दार्थ - कंपिल्ले - काम्पिल्य-कम्पिलपुर, णयरे - नगर में, उदिण्णबलवाहणे - बल - चतुरंगिणी सेना और वाहन से उद्यत होकर, णामेणं संजओ णामं - नाम से संजय नामक, मिगव्वं - मृगया - शिकार के लिए, उवणिग्गए - नगर से निकला। ___भावार्थ - कम्पिलपुर नगर में विस्तीर्ण सेना तथा हाथी घोड़े और वाहनादि युक्त, संजय (संयति) नाम का राजा राज्य करता था। एक बार वह मृगया - शिकार खेलने के लिए नगर से बाहर निकला।
हयाणीए गयाणीए रहाणीए तहेव य। पायत्ताणीए महया, सव्वओ परिवारिए॥२॥ मिए छुहित्ता हयगओ, कंपिल्लुज्जाण-केसरे। भीए संते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए॥३॥
कठिन शब्दार्थ - हयाणीए - हयानीक - अश्व सेना से, गयाणीए - गजानीक - गज सेना से, रहाणीए - रथानीक - रथ सेना से, तहेव - तथा, पायत्ताणीए - पदाति अनीक - सेना से, महया - विशाल, सव्वओ - सब ओर से, परिवारिए - परिवृत्त (घिरा हुआ), मिए - मृगों को, छुहित्ता - प्रेरित करके -हांक कर, हयगओ - अश्व पर आरूढ, कंपिल्लुजाणकेसरे - कम्पिल नगर के केसर नामक उद्यान में, भीए- भयभीत, संते- श्रान्तथके हुए, वहेइ - व्यथित करता है, रसमुच्छिए - रस-मूर्च्छित होकर।
भावार्थ - हयानीक (घोड़ों की सेना) गजानीक (हाथियों की सेना) तथा रथानीक (रथों की सेना) और पदाति अनीक (पैदल सेना) इन चार प्रकार की बड़ी सेनाओं से चारों ओर से घिरा हुआ वह राजा घोड़े पर सवार होकर कम्पिलपुर के केसर नामक उद्यान में पहुँचा और रसमूर्च्छित अर्थात् मांस खाने में गृद्ध बना हुआ वह संजय राजा उस उद्यान में हिरणों को क्षुभित कर के भयभीत बने हुए तथा श्रान्त - थके हुए हिरणों को मारने लगा।
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