Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - कठोर अनुशासन भी हितकारी xxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
भावार्थ - आचार्यादि गुरुजन मुझे कोमल अथवा कठोर वचनों से जो शिक्षा देते हैं, इसमें मेरा ही लाभ है, इस प्रकार विचार कर शिष्य को चाहिए कि वह सावधान हो कर उस शिक्षा को अंगीकार करे।
विवेचन - किसी प्रकार की भूल हो जाने पर उसके सुधार के निमित्त गुरुजन यदि किसी प्रकार की शिक्षा देने में प्रवृत्त हो तथा उस शिक्षा प्रवृत्ति में यदि वे कोमल अथवा कठोर वचनों का भी प्रयोग करे तो शिष्य को उचित है कि वह गुरुजनों के इस उपदेश को अपने लिए परम हितकारी समझ कर उसे श्रद्धा पूर्वक स्वीकार करे, गुरुजनों की हित शिक्षा की किसी भी रूप में अवहेलना न करे क्योंकि गुरुजनों की हित शिक्षा में अनेक प्रकार के प्रशस्त लाभ निहित हैं।
कठोर अनुशासन भी हितकारी अणुसासणमोवायं, दुक्कडस्स य.चोयणं। हियं तं मण्णए पण्णो, वेस्सं होइ असाहुणो॥२८॥
कठिन शब्दार्थ - अणुसासणं - शिक्षा, उवायं - उपाय युक्त, दुक्कडस्स - पापदुष्कृत-को, चोयणं - प्रेरणा को, हियं - हितकारी, मण्णए - मानता है, पण्णो - बुद्धिमान्, वेस्सं - द्वेष का कारण, होइ - होता है, असाहुणो - असाधु को।
भावार्थ - कोमल तथा कठोर शब्द रूपी उपाय से दी गई, गुरुजनों की शिक्षा और पापकार्यों से निवर्तन के लिए की गई प्रेरणा को बुद्धिमान् विनीत शिष्य हितकारी मानता है, किन्तु अविनीत शिष्य के लिए वही शिक्षा द्वेषोत्पादक होती है।
हियं विगयभया बुद्धा, फरुसं पि अणुसासणं। वेस्सं तं होइ मूढाणं, खंतिसोहिकरं पयं ॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - विगयभया - भय से रहित, बुद्धा - तत्त्वज्ञ शिष्य, फरुसं - कठोर, पि - भी, मूढाणं - मूर्तों के लिए, खंति - क्षमा, सोहिकरं - आत्मशुद्धि करने वाला, पयं - पद। - भावार्थ - सात प्रकार के भय से रहित तत्त्वज्ञानी शिष्य क्षमा और शुद्धि करने वाले ज्ञानादि गुणों के स्थान रूप गुरु महाराज की कठोर शिक्षा को भी हितकारी मानते हैं, किन्तु वही शिक्षा अज्ञानी अविनीत शिष्यों के लिए द्वेष उत्पन्न करने वाली होती है।
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