Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
उत्तराध्ययन सूत्र - ग्यारहवां अध्ययन
वृक्ष सभी वृक्षों में प्रधान (श्रेष्ठ) होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत साधु भी सभी साधुओं में श्रेष्ठ होता है। अर्थात् सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष के समान बहुश्रुत भी देवों का पूज्य होता है और सभी साधुओं में प्रधान होता है ।
विवेचन
१६०
अनादृत देव के नाम का अर्थ इस प्रकार किया गया है।
-
जिसने अपनी ऋद्धि, सत्ता आदि से जम्बूद्वीपवर्ती सभी देवों को अनादृत- तिरस्कृत कर दिया है। अर्थात् जम्बूद्वीप में रहने वाले सभी देवों में यह देव सबसे ज्यादा महर्द्धिक कहा गया है।
१४. सीता नदी की उपमा
-
जहा सा गईण पवरा, सलिला सागरंगमा ।
सीया णीलवंतपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २८ ॥
कठिन शब्दार्थ - ईण - नदियो में, सलिला - नदी, सागरंगमा सीया - सीता, णीलवंतपवहा - नीलवंत से उत्पन्न ( निकली ) हुई ।
भावार्थ - जैसे नीलवान् पर्वत से निकलने वाली और समुद्र में जा कर मिलने वाली वह सीता नामक नदी दूसरी नदियों में प्रधान (श्रेष्ठ) है। इसी प्रकार बहुश्रुत साधु भी प्रधान होता है। विवेचन - सीता नदी नीलवान् पर्वत से निकलती है, इसी प्रकार बहुश्रुत भी महान् उच्च कुल में जन्म धारण करता है। सीता नदी में निर्मल जल भरा रहता है उसी प्रकार बहुश्रुत भी निर्मल ज्ञान रूपी जल से परिपूर्ण होता है । सीता नदी बीच ही में नष्ट न होकर ठेट समुद्र में जा कर मिलती है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी चरम गति रूप मुक्ति की ओर ही बढ़ता रहता है। सीता नदी सभी नदियों में श्रेष्ठ होती है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी सभी साधुओं में प्रधान होता है। १५ मंदर पर्वत की उपमा
Jain Education International
-
जहा से गाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी ।
णाणोसहि पज्जलिए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥
पागाण
कठिन शब्दार्थ पर्वतों में, सुमहं - अतिशय महान्, मंदरेगिरी मंदर पर्वत, णाणोसहि नाना प्रकार की औषधियों से, पज्जलिए प्रज्वलित ।
भावार्थ - जिस प्रकार वह प्रसिद्ध सुमेरु पर्वत अन्य पर्वतों में प्रधान है। अतिशय महान्
-
*****
-
-
For Personal & Private Use Only
-
सागरगामिनी,
www.jainelibrary.org