Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन
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विवेचन - पुत्रों के संसार त्याग कर मुनि बनने की बात सुन कर भृगु पुरोहित की कैसी मनःस्थिति बनी, उसका इन दोनों गाथाओं में चित्रण किया गया है। मोहावेशवश वह बार-बार दीन-हीन वचनों का प्रयोग करके, धन और भोगों का निमंत्रण (प्रलोभन ) देते हुए घर में ही रहने के लिए आजीजी करने लगा किन्तु दोनों कुमारों ने पिता की इस मोहदशा को भलीभांति समझ लिया ।
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पुत्रों का पिता को समाधान
वेया अहीया ण हवंति ताणं, भुत्ता दिया णिंति तमं तमेणं ।
जाया य पुत्ताण हवंति ताणं, को णाम ते अणुमण्णिज्ज एयं ? ॥१२॥ - कठिन शब्दार्थ - वेया- वेदों को, अहीया पढ़े हुए, ताणं रक्षणकर्ता भुत्ता - भोजन कराने से, दिया - द्विजों (ब्राह्मणों) को, णिंति - ले जाते हैं, तमं तमेणं तमस्तम नामक नरक में, को णाम भला कौन, अणुमण्णिज - अनुमोदन करेगा।
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भावार्थ वेदों को पढ़ लेने मात्र से वे शरण रूप नहीं होते ऐसे ब्राह्मणों को (जो दयामय धर्म की निंदा करते हैं और हिंसामय धर्म की प्रशंसा करते हैं तथा यज्ञादि में पशुवध का विधान बता कर हिंसा की प्रेरणा करते हैं उनको) भोजन कराने से अन्धकार से अन्धकार में ले जाते हैं और उत्पन्न हुए पुत्र भी शरण रूप नहीं होते हैं (अर्थात् अपने कर्मों के वशीभूत हो कर नरकादि दुर्गतियों में जाते हुए जीव की रक्षा करने में वे समर्थ नहीं हैं) तो फिर पिताजी ! आपके इस कथन को कौन बुद्धिमान् पुरुष स्वीकार कर सकता है अर्थात् कोई भी स्वीकार नहीं
कर सकता।
समान, खाणी - खान, अणत्थाण
भावार्थ
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खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा ।
संसार - मोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥ १३ ॥ कठिन शब्दार्थ - खणमित्तसुक्खा - क्षण मात्र सुख के देने वाले, बहुकालदुक्खा लम्बे समय तक दुःख देने वाले, पगामदुक्खा बहुत दुःख, अणिगामसुक्खा - स्वल्प सुख, संसार मोक्खस्स - संसार को बढ़ाने वाले, विपक्खभूया विपक्ष भूत मोक्ष के शत्रु
के
अनर्थों की।
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काम - भोग क्षण मात्र सुख के देने वाले हैं किन्तु लम्बे समय तक दुःख देने
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