Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बंभचेरसमाहिठाणंणामंसोलसमंअज्झयणं ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान नामक सोलहवाँ अध्ययन
उत्थानिका - पन्द्रहवें अध्ययन में भिक्षु का स्वरूप बताया गया है। भिक्षु के गुणों में ब्रह्मचर्य की प्रधानता है। अतः इस सोलहवें अध्ययन में ब्रह्मचर्य का स्वरूप और उसकी रक्षा के स्थानों-साधनों का वर्णन किया गया है।
इस अध्ययन का नाम ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान है। क्योंकि इसमें ब्रह्मचर्य में समाधि प्राप्त करने के लिए निम्न दश ब्रह्मचर्य समाधि स्थानों का विशद वर्णन किया है -
१. विविक्त शयनासन। २. स्त्री कथा वर्जन। ३. स्त्री के साथ एकासन एवं वार्तालाप का त्याग। ४. स्त्री के अंगोपांगों को नहीं निरखना। ५. स्त्रो के वासनावर्द्धक शब्दादि को श्रवण न करना। ६. पूर्वानुभूत भोगों के स्मरण का निषेध। ७. विकार वर्द्धक आहार का त्याग। ८. परिमाण से अधिक आहार का त्याग। ६. श्रृंगार विभूषा का निषेध। १०. शब्दादि पांच इन्द्रिय विषयों की आसक्ति का त्याग।
ये ही ब्रह्मचर्य की नौ बाडें और दसवीं (एक) कोट है। इनका सम्यक् प्रकार से पालन करना ही ब्रह्मचर्य समाधि प्राप्त करना है। __ आगमकार ने इस अध्ययन में पहले गद्य रूप में और तत्पश्चात् पद्य रूप में ब्रह्मचर्य समाधि के सुरक्षात्मक नियम बता कर भिक्षु को उनका दृढ़तापूर्वक पालन करने का निर्देश दिया है साथ ही उक्त ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान को न अपनाने पर साधक को प्राप्त होने वाले दुष्परिणामों का भी उल्लेख किया है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
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