Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - सोलहवां अध्ययन ***************************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkti दीपक के प्रकाश पर मुग्ध हो कर उस पर गिर कर अपने शरीर को जला देता है। उसी प्रकार नारी के रूप पर मुग्ध होकर कामी पुरुष अपने संयमी जीवन को दग्ध (नष्ट) कर डालता है।
पंचम ब्रह्मचर्य समाधि स्थान - श्रुतिं संयम ____णो इत्थीणं कुड्डुतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तंतरंसि वा कूइयसदं वा रुइयसई वा गीयसदं वा हसियसई वा थणियसई वा कंदियसई वा विलवियसई वा सुणित्ता हवइ से णिग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह-णिगंथस्स खलु इत्थीणं कुइंतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तंतरंसि वा कूइयसई वा रुइयसई वा गीयसई वा हसियसदं वा थणियसई वा कंदियसई वा विलवियसदं वा सुणेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु णो णिग्गंथे इत्थीणं कुडंतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तंतरंसि वा कूइयसई वा रुइयसई वा गीयसहं वा हसियसई वा थणियसई वा कंदियसहं वा विलवियसई वा सुणेमाणे विहरेज्जा॥५॥ .. कठिन शब्दार्थ - कुड्डंतरंसि - कुड्य - मिट्टी की दीवार के अंतर से, दूरसंतरंसि -
कपड़े के पर्दे के अंतर से, भित्तंतरंसि - भीत-पक्की दीवार की ओर से, कूइयसई - कूजितरति क्रीड़ा शब्द, रुइयसई - सदित - प्रेममिश्रित रुदन (रति-कलहादि कृत) शब्द, गीयसई - गीत शब्द, हरियसई - हसित-ठहाका मार कर हंसने का, कहकहे लगाने का शब्द, थणियसइंस्तनित - अधोवायु निसर्ग आदि का-शब्द, कंदियसई - वन्दित शब्द - वियोगिनी का आक्रन्दन, णो सुणित्ता हवइ - नहीं सुनता है। ____ भावार्थ - जो मिट्टी की दीवार के अन्तर से, कपड़े के पर्दे के अन्तर से अथवा पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजित शब्द को, रुदित शब्द को, गीत की ध्वनि को, हास्य शब्द को, स्तनित (गर्जन से) शब्द को, आक्रन्दन या विलाप के शब्द को नहीं सुनता, वह निर्ग्रन्थ है। ___ यह क्यों? ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं - जो निर्ग्रन्थ मिट्टी की दीवार के अन्तर से, पर्दे के अन्तर से अथवा पक्की दीवार के अंतर से स्त्रियों के कूजन, रुदन, गीत, हास्य, गर्जन, आक्रन्दन अथवा विलाप के शब्दों को सुनता है उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में
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