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उत्तराध्ययन सूत्र - सत्तरहवां अध्ययन kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
अत्यंतम्मि य सूरम्मि, आहारेइ अभिक्खणं।
चोइओ पडिचोएइ, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१६॥ . कठिन शब्दार्थ - अत्यंतम्मि - अस्त होने तक, सूरम्मि - सूर्य के, चोइओ - प्रेरणा देने पर, पडिचोएइ - उन्हीं पर आक्षेप करता है। ____ भावार्थ - सूर्य के अस्त होने तक जो बार-बार आहार करता है अर्थात् प्रातःकाल से संध्या तक आहार करने में ही लगा रहता है और ऐसा न करने के लिए अथवा तपस्यादि करने के लिए गुरु महाराज द्वारा प्रेरणा करने पर उनके वचन का अनादर करते हुए प्रत्युत्तर देता है वह पापश्रमण कहलाता है। .. आयरियपरिच्चाई, परपासंड-सेवए।
गाणं-गणिए दुब्भूए, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - आयरियपरिच्चाई - आचार्य का परित्याग कर, परपासंडसेवए -. परपाषण्ड का सेवन करता है, गाणंगणिए - गाणंगणिक - बार बार गण बदलने वाला, दुब्भूए - दुर्भूत - निन्दित। ___ भावार्थ - आचार्य महाराज को छोड़ कर अन्यमत में जाने वाला, छह महीनों के भीतर एक गच्छ को छोड़ कर दूसरे गच्छ में जाने वाला, दुर्भूत - निंदनीय साधु पापश्रमण कहलाता है।
विवेचन - गाणंगणिक का अर्थ करते हुए टीकाकार, कहते हैं - "गणाद् गणं षण्मासाभ्यन्तरं संक्रामतीति गाणंगणिक इत्यागमिकी परिभाषा" - शान्त्याचार्य वृहदवृत्ति पत्र ४३५ - जो श्रमण विशेष कारण के बिना अपनी इच्छा से ही छह मास के भीतर एक गण से दूसरे गण में संक्रमण करता है उसे 'गाणंगणिक' कहा जाता है।
सयं गेहं परिच्चज्ज, परगेहंसि वावरे। णिमित्तेण य ववहरइ, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - सयं - अपना, गेहं - घर, परिच्चज - छोड़ कर, परगेहंसि - अन्य गृहस्थ के घर में, वावरे - व्याप्त, णिमित्तेण - निमित्त (शुभाशुभ) बतला कर, ववहरइ - व्यवहार करता है।
भावार्थ - अपना घर अर्थात् गृहस्थाश्रम छोड़ कर जो संयमी बना है, फिर भी रसलोलुपी होकर जो गृहस्थों के घरों में फिरता है, गृहस्थ के कार्य करता है और शुभाशुभादि निमित्त-विद्या बता कर द्रव्य उपार्जन करता है, वह पापश्रमण कहलाता है।
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