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पापश्रमणीय - पापश्रमण का स्वरूप k★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
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लाता हा.
दुद्ध-दही-विगईओ, आहारेइ अभिक्खणं। अरए य तवोकम्मे, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - दुद्ध-दही-विगईओ - दूध, दही आदि विकृतिजनक पदार्थों का, अरए - अरत-अप्रीति, तवोकम्मे - तपश्चरण में।
भावार्थ - दूध, दही आदि विगयों का जो बारबार आहार करता है और इसीलिए तपस्या करने में अरत-जो अप्रीति रखता है, वह पापश्रमण कहलाता है।
विवेचन - ठाणाङ्ग सूत्र के पांचवें ठाणे में पांच प्रकार के विगय (विगइ-विकृति) बताये गये हैं यथा - दूध, दही, घी, तेल, मीठा। साधु-साध्वी को प्रतिदिन पांचों विगयों का सेवन नहीं करना चाहिए। पांच विगय में “दही" का नाम भी है। इससे स्पष्ट होता है कि दही अचित्त है। उसमें जीव नहीं होते इसी प्रकार दही के साथ मूंग, मोठ, चने आदि की दाल और बेसन का सम्मिश्रण हो जाने पर भी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। द्वि दल में जो 'जीवों की उत्पत्ति होती है। यह मान्यता आगम सम्मत्त नहीं है। इसी प्रकार २२ प्रकार के अभक्ष्य की मान्यता भी आगम सम्मत्त नहीं है। वैसे निश्चय नय की अपेक्षा तो जीव का स्वभाव अनाहारक (किसी प्रकार का आहार नहीं लेना) होना है। सिद्ध भगवान् अनाहारक हैं। इस दृष्टि से जीव के लिए सब पदार्थ अभक्ष्य हैं। किन्तु जब तक संसारी हैं, शरीर धारी हैं, तब तक शरीर निर्वाह के लिए उसे आहार लेना पड़ता है उसमें अल्प पाप और महापाप का विवेक तो जिनवचनानुरागी बुद्धिमान् को करना ही चाहिए। जो वैज्ञानिकों का नाम लेकर दही में “बैक्टेरिया" नामक जीव बतलाते हैं (दुर्बीन के द्वारा) यह उनका भ्रम है। वह तो दही के अंश रूप रेशे दिखाई देते हैं। जैसे धूप में उड़ते हुए रजकण दिखाई देते हैं किन्तु वे जीव नहीं हैं। जीव की तरह पुद्गल भी गति करता है। वे दही में नीचे ऊपर होते रहते हैं। ___जिस पदार्थ का आहार करने से शरीर में मद, काम आदि विकार उत्पन्न होते हैं उसे विगय-विकृति कहते हैं। स्थानांग सूत्र स्थान है में विकृति के नौ भेद इस प्रकार कहे हैं - १. दूध २. दही ३. घी ४. नवनीत ५. तेल ६. मीठा ७. मधु ८. मद्य और ६. मांस। इनमें मद्य और मांस तो सदैव त्याज्य है। नवनीत और मधु महाविगय है जिनका गाढ़ागाढ़ कारण सेरोगादि कारणवश उपयोग किया जा सकता है। शेष विगयों का भी बार-बार सेवन करने से विकार पैदा होता है और मन तपस्या से हट जाता है अतः विगयों का प्रतिदिन-बारबार सेवन करने वाले साधु को पापश्रमण कहा गया है। ..
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