Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - चतुर्थ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान-स्त्री अंगोपांग अदर्शन २७६ ************************************************************** चतुर्थ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान - स्त्री अंगोपांग अदर्शन ___णो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता णिज्झाइत्ता हवइ से णिग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह-णिग्गंथस्स खलु इत्थीणं इंदियाइं मणोहराई मणोरमाई आलोयमाणस्स णिज्झायमाणस्स बंभयारिस्स बंधचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मार्य वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा, तम्हा खलु णो णिग्गंथे इत्थीणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोएज्जा णिज्झाएज्जा॥४॥ ____कठिन शब्दार्थ - मणोहराई - मनोहर-चित्ताकर्षक, मणोरमाइं - मनोरम - चित्तालादक,
आलोइत्ता - आलोकन-थोड़ा देखना, णिज्झाइत्ता - निर्ध्यान-जम कर व्यवस्थित रूप से देखना, इंदियाई - इन्द्रियों का, उपलक्षण से सभी अंगोपांगों का।
भावार्थ - जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को ताक-ताक कर नहीं देखता, उनके विषय में चिंतन नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ श्रमण है। ऐसा क्यों? ऐसा पूछने पर आचार्य फरमाते हैं - जो निर्ग्रन्थ ब्रह्मचारी स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को दृष्टि गड़ा कर देखता है उनके विषय में चिंतन करता है उसके ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती. है या ब्रह्मचर्य का भंग हो जाता है अथवा उन्माद पैदा हो जाता है अथवा दीर्घकालिक रोग और आतंक हो जाता है या वह केवलिप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए निर्ग्रन्थ, स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को न तो देखे और न ही उनका चिंतन करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चौथें ब्रह्मचर्य समाधि स्थान के अंतर्गत दृष्टि संयम का कथन किया गया है। यानी ब्रह्मचारी साधक स्त्रियों के अंगोपांगों को नहीं निरखे।
___ देशवैकालिक सूत्र में भी कहा गया है कि ब्रह्मचारी साधक स्त्रियों के अंग प्रत्यंग, संस्थान (आकृति), सुंदर आलाप, नेत्र विन्यास आदि पर टकटकी लगा कर न देखे क्योंकि ये काम राग बढ़ाने वाले हैं। आत्म हितैषी साधु, स्त्री की ओर ताक कर देखना तो दूर रहा, दीवार, पोस्टर एवं कागज या काष्ठ पर चित्रित सुअलंकृत नारी की ओर भी ताक कर न देखे। जिस प्रकार पतंगा
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