Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - दसवीं बाड़ - शब्दादि में आसक्ति का निषेध
२८६
kakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में ब्रह्मचारी की भोजन विधि बताई गयी है जो इस प्रकार समझना चाहिए -
१. कैसा भोजन? 'धम्मलद्धं' - धर्मविधि से प्राप्त एषणीय कल्पनीय भोजन ग्रहण करे। किसी से जबरन छीन कर, डरा कर, ठग कर या अविधि पूर्वक प्राप्त किया हुआ आहार ग्रहण नहीं करे।
२. कितना भोजन? 'मियं' - मित - परिमित मात्रा में भोजन करे। ३. कब भोजन करे? 'काले' - उचित समय पर भोजन करे।
४. किसलिए भोजन करे? 'जत्तत्धं' - जीवन यात्रा यानी संयम यात्रा के निर्वाह के लिए भोजन करे, शरीर पुष्टि के लिए नहीं।
५. किस प्रकार भोजन करे? 'पणिहाणवं' - स्थिर चित्त - शांत चित्त होकर भोजन करे। . . नौवीं बाड़ - विभूषा त्याल ..
विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीरपरिमंडणं।। बंभचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं ण धारए॥६॥
कठिन शब्दार्थ - विभूसं - विभूषा को, परिवज्जेज्जा - छोड़ दे, सरीर परिमंडणं - शरीर का मण्डन, सिंगारत्थं - श्रृंगार के लिए, ण धारए - धारण न करे। - भावार्थ - ब्रह्मचर्य में रत साधु शरीर की विभूषा और शरीर संस्कार को छोड़ दे अर्थात् केश-श्मश्रु आदि को न संवारे एवं श्रृंगार के लिए कोई कार्य न करे।
१०. क्सवीं बाड़-शब्दादि में आसक्ति का निषेध सद्दे रूवे य गंधे य, रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे, णिच्चसो परिवज्जए॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - पंचविहे - पांच प्रकार के, कामगुणे - कामगुणों को।
भावार्थ - ब्रह्मचारी साधु पांच प्रकार के कामगुण अर्थात् पांच इन्द्रियों के मनोज्ञ विषय शब्द, रूप, गन्ध, रस और इसी प्रकार स्पर्श इनका सदा त्याग करे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org