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ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - पांचवीं बाड़ - वासनावर्द्धक शब्दादि श्रवण निषेध २८७ *****************************************kkkkkkkkkkkkkkkkk
कठिन शब्दार्थ - संथवं - संस्तव-अति परिचय, थीहिं - स्त्रियों से, संकहं - संभाषणसाथ बैठ कर कथा करने का, अभिक्खणं - बार-बार, परिवज्जए - परित्याग करे।
भावार्थ - ब्रह्मचर्य में रत साधु को चाहिए कि स्त्रियों के साथ परिचय और बारम्बार स्त्रियों के साथ वार्तालाप और उनके साथ एक आसन पर बैठने आदि कार्यों को सदा के लिए त्याग दे। - विवेचन - ब्रह्मचर्य परायण भिक्षु स्त्रियों के साथ एकासन, वार्तालाप एवं अतिसंसर्ग का त्याग करे।
४ चतुर्थ बाड़ - अंग-प्रत्यंग-प्रेक्षण निषेध अंग-पच्चंग संठाणं, चारुल्लवियपेहियं। बंभचेररओ थीणं, चक्खुगिझं विवज्जए॥४॥
कठिन शब्दार्थ - अंगपच्चंग संठाणं - अंग (मस्तक आदि) प्रत्यंग (कुच-कक्षादि) एवं संस्थान को, चारुल्लवियपेहियं - सुंदर, संभाषन और कटाक्ष को देखने का, थीणं - स्त्रियों के, चक्खुगिज्झं - चक्षुइन्द्रिय से ग्राह्य (ग्रहण)।
भावार्थ - ब्रह्मचर्य में रत साधु को चाहिए कि स्त्रियों के अंग (मस्तक आदि) तथा प्रत्यंग (कुच-कक्षादि) को बोलने का मनोहर ढंग एवं कटाक्षपूर्वक देखना इत्यादि बातें, जो कि चक्षु इन्द्रिय के विषय हैं उन्हें वर्जे अर्थात् उन पर दृष्टि पड़ने पर तत्काल दृष्टि पीछी हटा ले, किन्तु रागवश हो कर बार-बार उनकी ओर न देखे तथा निरखें नहीं, टकटकी लगाकर देखे नहीं।
५ पांचवीं बाड़ - वासनावद्धक शब्दादिश्रवण निषेध कुइयं रुइयं गीयं, हसियं थणियकंदियं। बंभचेररओ थीणं, सोयगिझं विवज्जए॥५॥
कठिन शब्दार्थ - कूइयं - कूजित, रुइयं - रुदित, हसियं - हसित, थणिय - स्तनित, कंदियं - क्रन्दित, सोयगिझं - श्रोत्रेन्द्रिय से ग्राह्य।
भावार्थ - ब्रह्मचर्य में रत साधु स्त्रियों का कोयल के समान मीठा शब्द, प्रेममिश्रित रोना, गाना, हँसना, काम विषयक सराग शब्द क्रन्दित एवं विलाप का शब्द जो श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है, उनको वर्जे, भीत-पर्दे आदि के अन्तर से भी स्त्रियों के उपरोक्त शब्दों को न सुने।
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