Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - सोलहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
भावार्थ - जो दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है उस ब्रह्मचारी पुरुष को वैमानिक और ज्योतिषी देव, दानव - भवनपति देव और गन्धर्व देव तथा यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि व्यंतर जाति के देव, इस प्रकार चारों जाति के देव नमस्कार करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में ब्रह्मचर्य की महिमा गाई गयी है। दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले को देवादि नमस्कार करते हैं।
देव - विमानवासी एवं ज्योतिषी दानव - भवनपति गन्धर्व - गायक देव यक्ष - वृक्षवासी व्यन्तर देव, राक्षस - क्रूर जाति के व्यन्तर देव, किन्नर - व्यन्तर जाति के देव।
उपसंहार एस धम्मे धुवे णिच्चे, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिझंति चाणेणं, सिज्झिस्संति तहावरे॥१७॥ त्ति बेमि॥
कठिन शब्दार्थ - एस - यह, धम्मे - ब्रह्मचर्य रूप धर्म, धुवे - ध्रुव, णिच्चे - नित्य, सासए - शाश्वत, जिणदेसिए - जिनोपदिष्ट, सिद्धा - सिद्ध हुए हैं, सिझंति - सिद्ध हो रहे हैं, अणेणं - इसका पालन करने से, सिज्झिस्संति - सिद्ध होंगे, अवरे -. दूसरे अनेक। ___ भावार्थ - यह ब्रह्मचर्य रूप धर्म ध्रुव है, नित्य है शाश्वत है अर्थात् त्रिकाल स्थायी है
और जिनेश्वर भगवान् द्वारा कहा हुआ है, इसका पालन करने से अनेक जीव भूतकाल में सिद्ध हुए हैं तथा वर्तमान काल में सिद्ध हो रहे हैं और इसी प्रकार भविष्यत् काल में भी सिद्ध होंगे। ऐसा मैं कहता हूँ। ... विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में ब्रह्मचर्य धर्म के जो विशेषण दिये हैं, उनके विशिष्ट अर्थ इस प्रकार है -
१. ध्रुव - परतीर्थिकों द्वारा भी अनिरुद्ध अतएव प्रमाण प्रतिष्ठित। २. नित्य - त्रिकाल में भी अविनश्वर। ३. शाश्वत - त्रिकाल फलदायी।
॥इतिब्रह्मचर्यसमाधिस्थाननामक सोलहवाँ अध्ययनसमाप्त।
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