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ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान दसवाँ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान - पंचेन्द्रिय विषय संयम
गमन है अतः क्यों न उपभोग करूँ? ऐसी शंका तथा अधिक चाहने पर स्त्री सेवन की आकांक्षा अथवा बार-बार मन में ऐसे विचारों का भूचाल मंच जाने से स्त्रीसेवन की प्रबल इच्छा हो जाती है और वह ब्रह्मचर्य भंग कर देता है।
दसवाँ ब्रह्मचर्य समाधि स्थान - पंचेन्द्रिय विषय संयम
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णो सद्दरूवरसगंधफासाणुवादी हवड़ से णिग्गंथे । तं कहमिति चे ? आयरियाह- णिग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवादिस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा भेदं वा लभेज्जा उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु णो णिग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवादी हवेज्जा । दसमे बंभर-समाहिठाणे हवइ ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - सद्द-रूव-रस गंध फासाणुवादी
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स्पर्श में अनुपाती (आसक्त ) ।
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भावार्थ जो साधक शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में आसक्त नहीं होता, वह निर्ग्रथ है। ऐसा क्यों? इस प्रकार पूछने पर आचार्य कहते हैं- शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में आसक्त होने वाले ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न हो जाती है अथवा ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है अथवा उसे उन्माद पैदा हो जाता है या फिर दीर्घकालिक रोग या आतंक हो जाता है अथवा वह केवलिप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है अतः निर्ग्रथ शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में अनुपाती (आसक्त ) न बने ।
विवेचन - सद्द - रुव - रसगंध फासाणुवाई अर्थात् स्त्रियों के मनोज्ञ शब्द - कोमल ललित शब्द या गीत रूप उनके कटाक्ष, वक्षस्थल, कमर आदि का या उनके चित्रों का अवलोकन रस मधुर आदि रसों द्वारा अभिवृद्धि पाने वाला, गन्ध
कामवर्द्धक सुगंधित पदार्थ एवं स्पर्श-आसक्तिजनक कोमल कमल आदि का स्पर्श इनमें लुभा जाने वाला, फिसल जाने वाला, प्रतित होने वाला था आसक्त हो जाने वाला ।
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भवंति य इत्थ सिलोगा तं जहा
कठिन शब्दार्थ - इत्थ इस विषय में, सिलोगा - श्लोक ।
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शब्द, रूप, रस, गन्ध और
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