________________
ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - द्वितीय ब्रह्मचर्य समाधि स्थान-स्त्रीकथावर्जन २७७. .. **************************************************************
स्त्री को बार-बार देखने आदि से कामाधिक्य के कारण निम्नोक्त दश कामभाव उत्पन्न हो जाते हैं - १. चिंता २. दर्शनेच्छा ३. दीर्घनिःश्वास ४. कामज्वर ५. अंगों में दाह ६. आहार में अरुचि ७. कम्प ८.. उन्माद ६. प्राणों के अस्तित्व की आशंका और १०. जीवन त्याग या आत्म हत्या।
७. धर्मभ्रंश - इन सब अनिष्टों के उत्पन्न होने से ब्रह्मचर्य समाधि नहीं रहती, वह केवली प्ररूपित श्रुत चारित्र धर्म से भी भ्रष्ट हो जाता है।
द्वितीय ब्रह्मचर्य समाधि स्थान-स्त्रीकथावर्जन ।
णो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ से णिगंथे। तं कहमिति चे? आयरियाहणिग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिजा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु णो णिग्गंथे इत्थीणं कहं कहेज्जा॥२॥
कठिन शब्दार्थ - इत्थीणं - स्त्रियों की, कहं - कथा, णो कहित्ता हवइ - नहीं कहता है, णिगंथे - निर्ग्रन्थ।
भावार्थ:- जो स्त्रियों की कथा नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों? ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं - जो साधु स्त्रियों संबंधी कथा करता है उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है अथवा ब्रह्मचर्य का नाश होता है अथवा उन्माद पैदा होता है या दीर्घकालिक रोग और आतंक हो जाता है अथवा वह केवलि-प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है अतः निर्ग्रन्थ स्त्री संबंधी कथा न करें।
विवेचन - ‘णो इत्थीणं कहं कहित्ता हवई' की व्याख्या बृहद वृत्तिकार ने दो प्रकार से की है, जो इस प्रकार हैं -
१. केवल स्त्रियों के बीच में कथा (उपदेश) न करे।
२. स्त्रियों की जाति, रूप, कुल, वेश, श्रृंगार आदि से संबंधित कथा न करे। जैसे जाति- यह ब्राह्मणी है, वह वेश्या है, कुल - उग्र कुल की ऐसी होती है, अमुक कुल की वैसी, रूप - कर्णाटकी विलासप्रिय होती है इत्यादि, संस्थान - स्त्रियों के डीलडौल आकृति, ऊँचाई आदि की चर्चा, नेपथ्य - स्त्रियों के विभिन्न वेश, पोशाक, पहनावे आदि की चर्चा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org