Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 302
________________ २७३ ★kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान - ब्रह्मचर्य समाधि स्थान १. ब्रह्मचर्य समाधि स्थान का मजा सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं। इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेर-समाहि-ठाणा पण्णत्ता, जे भिक्खू सुच्चा णिसम्म संजमबहुले संवर- . बहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - सुयं - सुना है, मे - मैंने, आउसं - हे आयुष्मन्! तेणं- उन, भगवया - भगवंतों ने, एवं - इस प्रकार, अक्खायं - कहा है, इह - इस निग्रंथ प्रवचन में, खलु - निश्चय से, थेरेहिं भगवंतेहिं - स्थविर भगवंतों ने, दस बंभचेर समाहिठाणा - ब्रह्मचर्य समाधि के दस स्थान, पण्णत्ता - बतलाए हैं, जे - जो, भिक्खू - भिक्षु, सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - अर्थ का निश्चय कर, संजमबहुले - संयम में अधिकाधिक लक्ष्य रखने वाला, संवरबहुले - संवर में अधिक सम्पन्न, समाहिबहुले - समाधि में अधिक सम्पन्न, गुत्ते - गुप्त - मन, वचन, काया का गोपन करके, गुप्तिदिए - गुप्तेन्द्रिय, गुत्तबंभयारी - गुप्त ब्रह्मचारी, सया - सदा, अप्पमत्ते - अप्रमत्त होकर, विहरेज्जा - विचरे। ... भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन्! मैंने सुना है उन भगवंतों ने इस प्रकार फरमाया है इस जिन शासन में स्थविर भगवंतों ने ब्रह्मचर्य समाधि के दस स्थान बताये हैं, जिन्हें सुन कर और हृदय में धारण करके साधु संयम संवर और समाधि में दृढ़ हो कर मन-वचन-काय से गुप्त, गुप्तेन्द्रिय और गुप्त ब्रह्मचारी होकर (ब्रह्मचर्य का रक्षक) सदा अप्रमत्त भाव से विचरे। को । विवेचन - ब्रह्मचर्य का निश्चय नय की दृष्टि से अर्थ है - ब्रह्मचर्य। ब्रह्म अर्थात् आत्मा यानी आत्म स्वभाव में, चर्य अर्थात् स्मण या विचरण करना। ब्रह्मचर्य का व्यावहारिक दृष्टि से अर्थ है - सर्वेन्द्रिय संयम, इन्द्रिय मनोनिग्रह, जननेन्द्रिय संयम, वीर्यरक्षण, सर्व मैथुन विरमण आदि। ब्रह्मचर्य में चित्त का सम्यक् प्रकार से जम जाना, चित्त का दृढ़ हो जाना, मन, बुद्धि, चित्त और अन्तःकरण का तथा सभी इन्द्रियों एवं अंगोपांगों का ब्रह्मचर्य के साथ एकरस हो जाना, उसी में तल्लीन हो जाना, ब्रह्मचर्य से विचलित न होना 'ब्रह्मचर्य-समाधि' है। इस प्रकार की ब्रह्मचर्य-समाधि के स्थान साधन अर्थात् कारण- ब्रह्मचर्य-समाधि स्थान हैं, ऐसे ब्रह्मचार समाधि स्थान दश हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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