Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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MAT:
समिक्ख णामं पंचदहं अज्डायणं
सभिक्षु नामक पन्द्रहवां अध्ययन "चौदहवें अध्ययन में छह मुमुक्षु आत्माओं की प्रेरणादायी प्रव्रज्या का वर्णन होने के बाद प्रव्रजित भिक्षु की आदर्श जीवन चर्या के विषय में जिज्ञासा होती है। भिक्षु का कठोर असिधारा व्रत कितना जागृति पूर्ण ऋजुता, मृदुता, तितिक्षा, तप आदि गुणों से युक्त होता है, इसका वर्णन प्रस्तुत 'सभिक्षु' नामक इस पन्द्रहवें अध्ययन में किया गया है।
इस अध्ययन की प्रत्येक गाथा के अन्त में ‘स भिक्खू' (स भिक्षुः) पद आया है अतः इस अध्ययन का नाम 'सभिक्षु' रखा गया है। इस लघु अध्ययन में सच्चे भिक्षु के लक्षण बताते हुए भिक्षु जीवन के अनेक उत्तमोत्तम गुण एवं मर्यादाओं का बहुत ही सारपूर्ण वर्णन किया गया है। इसकी प्रथम गाथा इस प्रकार है -: .
. भिक्षत्व की चौभंगी - मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म, सहिए उज्जुकडे जिवाणछिण्णे।
संथवं जहिज अकामकामे, अण्णायएसी परिव्वए स भिक्खू॥१॥ 3-5 . ... कठिन शब्दार्थ - मोणं - मौन - मुनित्व-मुनिभाव का, चरिस्सामि आचरण करूँगा, समिच्च - स्वीकार कर, धम्म - धर्म को, सहिए - सहित - सम्यग्दर्शन गुणादि से युक्त, स्वहित में तत्पर आत्म-हिताभिलाषी, उजुकडे - ऋजुकृत - माया से रहित, णियाण छिण्णेनिदान छिन्न - निदान का छेदक-निदान रहित, संथवं संस्तव-परिचय का, जहिज - त्यागी, अकामकामे - काम वासना से रहित, अण्णायएसी - अज्ञातैषी - अज्ञात कुल की भिक्षा करने वाला, परिव्वए - अप्रतिबद्ध विहारी, स - वही, भिक्कू भिसभिक्षुहा
भावार्थ - जिसने विवेक पूर्वक सच्चे धर्म का विचार कार के मुनिवृत्ति अंगीकार करूँगा इस प्रकार के विचार वाला जो सम्यग्दर्शनादि से युक्त है, जो माया-रहित होकर सरल और नियाणा रहित तप-संयमादि क्रिया करने वाला है, जिसने अपने गृहस्थाश्रम के सम्बन्धियों के परिचय का त्याग कर दिया है, जो विषय-भोगों की अभिलाषा से रहित है तथा अज्ञात कुलों में गोचरी करता हुआ अप्रतिबद्ध विहार करता है, वह भिक्षु-मुनि कहलाता है।
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